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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मिश्रितप्रकरणम् ४. जातिस्वरस्थानबलप्रमोदैर्जवेन सत्त्वेन तथाऽऽनुकूल्यात्॥ दिकालतिथ्यादिकहंसचारैर्बलाबलं प्राणभृतां परीक्ष्यम् ॥१९॥ . ॥टीका ॥ भाषिण्य इति प्रसन्नं मृदु भाषितुं शीलं यासांताः तथा। अतः अस्मात् एतयोः स्त्रीपुरुषयोरन्यन्नपुंसकं भवतीति भावार्थः ॥ १८ ॥ जातीति ॥ प्राणभृता शकुनानां बलावलं परीक्ष्यं विचारणीयमित्यर्थः।कै जातिस्वरस्थानबलप्रमोदैरिति अत्र जा. तिश्च स्वरश्च स्थानं च बलं च प्रमोदश्च जातिस्वरस्थानवलप्रमोदास्तैः इतरेतरबंदः जात्या यथा वर्णेषु क्षत्रियजातीयापेक्षया क्षत्रियो बलवान् एवमन्यत्रापि।स्वरेण मंदमध्यतारभेदेन तत्र मंद्रापेक्षया तारस्वरो निर्बलः शूद्रजातीयो निर्बल ब्राह्मणो बलवान् वैश्यो निर्बल वैश्यजातीयापेक्षयास्थानेन स्वस्थानापेक्षया परस्थानस्थो निर्बलः बलेन रात्रिबलो दिवा निर्बलः दिवावलो रात्री निर्वलः जवेन जवः शीव्रगतिस्तेन यथा मंदगतिनिर्बलः सत्त्वेन पराक्रमेण सर्वेभ्यः शरभो बलीयान् आनुकूल्यादिति शुभेषु कार्येषु शुभः बलीयान् अशुभेषु अशुभः यथाक्रम तयोस्तत्रानुकूल्यादिकालतिथ्यादिक हंसचारैरिति अत्रापीतरेतरद्वंदः । दिक्च कालश्च तिथ्यादिकंच हंसचारश्च दिक्कालतिथ्यादिकहंसनारैरिति दिशां बलं त्वग्रे वक्ष्यमाणं कालेन रात्रिचारिणां रात्रावेव वलं दिवाचारिणां दिवस एव बलं तिथ्या प्रतिपदादिकया पूर्णरिक्तादिधर्मेण ॥ भाषा। जिनकी होय ऐसे लक्षण जिनमें होय वे पक्षी स्त्रीसंज्ञक जानने और जैसेही इन दोनों ल. क्षण करके रहित होय इनमेंसे कोईभी लक्षण जिनमें न होय वे पक्षी नपुंसक जानने ॥ ॥ १८ ॥ जातीति ॥ प्राणधारी शकुन पक्षिनको बल और अबल विचारनो योग्यहै कोयकरके, जातिकरके, जैसे वर्णनमें क्षत्रिय जातिकी अपेक्षा करके ब्राह्मण बलवान् हैं और वैश्व निर्बल है ऐसे ही वैश्यजातिकी अपेक्षा करके शूद्र जाति निर्बल है और क्षत्रियजाति बलवान् है या प्रकार और जगहभी जानना और स्वरकरके मंद्रमध्यतारभेद करके मंद्र स्वरकी अपेक्षा करके तारस्वर निर्बल है और स्थानकरके अपने स्थानमें स्थित होय सो बलवान्, और पराये स्थानमें स्थित होयं सो निर्बल, और बलकरके रात्रिमें बलवान् है सो दिवसमें निर्बल है, और दिवसमें बलवान् है सो रात्रिमें निर्बल है, और सत्त्वकरके संपूर्ण जीवनतें सरभपक्षी : बलवान् है, और सब निर्बल हैं, और अनुकूलके प्रभावते शुभका For Private And Personal Use Only
SR No.020879
Book TitleVasantraj Shakunam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasantraj Bhatt, Bhanuchandravijay Gani
PublisherKhemraj Shrikrushnadas Shreshthi Mumbai
Publication Year1828
Total Pages596
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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