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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ३० ) स्वमाध्याय । कृष्णवर्णा विकृताङ्गी नग्ना कुञ्चितकुन्तला ॥ स्वप्ने नारी यमाकृष्य रमते स म्रियेत वै॥५६॥ कज्जलेन च तैलेन लिप्ताङ्गो रासभोपरि ॥ समारूढो यमदिशं यो यायात्स म्रियेत वै ॥ ५७ ॥ खरक्रमेलकयुतं समारुह्य च वाहनम् | जागृयात्स्वप्नमध्याद्यो मृत्युस्तस्य ध्रुवं भवेत् ॥ ५८ ॥ यः पङ्किलेऽ म्भसि स्वने उन्मज्जति निमज्जति ॥ निर्गच्छति च कृच्छ्रेण भूतेन म्रियते च सः ॥ ५९ ॥ नृत्यन्मत्तश्च यो मर्त्यो यमस्य नगरीमुखम् ॥ प्रेक्षते वा प्रविशति स प्राणैर्विरही भवेत् ॥ ६० ॥ रक्ताङ्गरागवसन भूषणैरतिभूषिताम् ॥ नारों विचुम्ब्य सुरतं यः करोति म्रियेत सः ॥ ६१ ॥ स्वप्ने क्रूरं च पुरुषं यः पश्यति निरन्तरम् ॥ वर्षमध्ये सवस्तस्य यमस्यातिथयः किल ॥ ॥ ६२ ॥ हर्षोत्कर्षः स्वप्नमध्ये विवाहो वापि जायते ॥ यस्य सोऽपि विजानीयान्मृत्युमागतमन्तिके ॥ ६३ ॥ स्वप्ने नारी खर्परेषु निधायान्नं च यं नरम् || रात्रावभिसरेत्सोऽपि न चिरेण विनश्यति ॥ ६४ ॥ पिशाचश्वपचप्रेतप्रकृतिं प्रमदां गतः ॥ कन्यां च कामी यो गच्छेत्स आशु म्रियते नरः ॥ ६५ ॥ स पुरुषको स्वप्न आलिङ्गन करती है वह शीघ्र मरता है ॥ ५५ ॥ काली विकृताङ्गी ( नाक आदि से रहित) नंगी ठेढे केशोंवाली स्त्री स्वममें जिस पुरुषको खेचकर रमण करती है वह निश्चय मरता है ॥ ५६ ॥ स्या हीसे अथवा तेल से युक्त जो पुरुष गधे के ऊपर चढकर दक्षिण दिशाको जाय वह पुरुष निश्चय मरे ॥१७॥ गधा और ऊंटसे युक्त सवारीमें चढ़कर जो स्वप्नके बीचमें जागे उसकी मृत्यु निश्चय होय ||१८|| जो पुरुष कीचडयुक्त जल में स्वप्न में डूबता है निकलता है ऊपरको उठता है वह बडे दु:खसे मरताहै ॥ ५९ ॥ नाचताहुआ उन्मत्त जो पुरुष यमराजकी नगरीके मुखको देखता है, अथवा प्रवेश करता है वह प्राणसे रहित होता अर्थात् मरताहै ॥ ६० ॥ लालअङ्ग लालवस्त्रोंसे गहनों से शोभित स्त्रीका मुखचुम्बन कर जो विषय करता है वह मरता है ॥ क्रूरपुरुषको निरन्तर देखता है, उसके प्राण वर्ष के भीतर यमराजके अतिथि बीचमें मरताहै ॥ ६२ ॥ स्वनके बीच में जिसको अत्यन्त आनन्द होता है, उसकी भी मृत्युसमीप आई जानना || ६३ ॥ स्वप्न में स्त्री खप्पड में पुरुषको अभिसरण करे वह पुरुष भी शीघ्र नाशको प्राप्त होय ॥ ६४ ॥ पिशाच चाण्डाल For Private And Personal Use Only ६१ ॥ जो स्त्रप्नर्मे होते हैं अर्थात् वर्षके अथवा विवाह होता है अन्न रखकर जिस
SR No.020879
Book TitleVasantraj Shakunam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasantraj Bhatt, Bhanuchandravijay Gani
PublisherKhemraj Shrikrushnadas Shreshthi Mumbai
Publication Year1828
Total Pages596
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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