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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ( २२ ) वसंतराजशाकुने- तृतीयो वर्गः । विमर्शकृच्छाकुनशास्त्रदक्षो विशुद्धबुद्धिः सतताभियुक्तः ॥ यथार्थवादी शुचिरिंगितज्ञो भवेदिहाचार्यपदाधिकारी ॥२॥ पोदकी भषणकाकपिंगला जंबुकप्रियतमा च पंचमी ॥ एतदत्र मुनिसत्तमैः सदा कीर्त्यते शकुनरत्नपंचकम् ॥ ३ ॥ ॥ टीका ॥ कार्य पुनः सर्वमेव सिध्यति ॥ १ ॥ इहाधिकारी कीटक स्यादित्यपेक्षायामाह - विमर्शकृदिति ॥ इहास्मिन् ग्रंथे ईदृगाचार्यपदाधिकारी भवतीत्यन्वयः । तत्राचर्यते सेव्यते ज्ञानार्थ शिष्यैरित्याचार्यस्तस्य पदं स्थानं तत्राधिकारः प्रवर्तनं विद्यते यस्य स तथा कीदृग्विमर्श कृदिति विमर्श पूर्वापरपर्यालोचनं करोतीति विमर्श कृत् । क्किपः सर्वापहारे " ह्रस्वस्य पिति कृति तुक" इति तुक् । पुनः कीदृशः शाकुनशास्त्रदक्ष इति शाकुनं यच्छात्रं तत्र दक्षश्चतुरः पुनः कीदृग्विशुद्धबुद्धिः विशुद्धा निर्मला शकुनविचारकरणकुशलेति यावत् बुद्धिः प्रतिभा यस्य सः पुनः कीदृक् सतताभियुक्तः सततमहर्निशमभियुक्तः पठनपाठनादिना कृतपरिश्रमः पुनः की यथार्थवादीति यथार्थ यथादृष्टानुसारि वदतीत्येवंशीलः स तथान तु तन्मनोरंजना विपरीतमपि भाषते यदुक्तं किराते । "स किंसखा साधु न शास्ति योधिपं हितान यः संशृणुते स किं प्रभुरिति । पुनः कीदृशः शुचिः पवित्रः देहमालिन्यरहित सदाचरणशीलश्च । पुनः कीदृक इंगितज्ञ इति इंगितं पूर्वोक्तं जानातीति इंगितज्ञः ॥ २ ॥ अथ शकुनेषु मुख्यत्वेन पंचैव प्रतिपादयन्नाह ॥ पोदकीति ॥ तत्र पोदकी देवी Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ भाषा ॥ करके पहले पूजा करो ता करके फिर संपूर्ण कार्य अवश्य सिद्ध होय. ॥ १ ॥ यामे अधिकारी कैसो होय ताय कहै हैं | विमर्शकृदिति ॥ या ग्रंथ में गुरुपदको अधिकारी ऐसो होय अर्थात् गुरु ऐसो होय पूर्वापरको विचार करनेवालो होय और शकुनशास्त्र में चतुर होय कहा शकुन अच्छी तरह सूं जानता होय, और विशेष करके शुद्धबुद्धिहोय, और जैसो देख्यो होय तैसोही यथार्थको करवेवालो होय, और पवित्रहोय, आलस्यरहित धर्मयुक्त आचार में शीलस्वभाव जाको होय, और पहलेकही ये मनुष्यादिकनकी चेष्टा ताय जानै ऐसो होय, सो गुरु होयकूं योग्य है ॥ २ ॥ शकुननमें मुख्यता करके पांचही हैं तिनें कहे हैं | पोदकीति ॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020879
Book TitleVasantraj Shakunam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasantraj Bhatt, Bhanuchandravijay Gani
PublisherKhemraj Shrikrushnadas Shreshthi Mumbai
Publication Year1828
Total Pages596
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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