SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 579
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भाषाटीकासमेत । (२३) यः॥ स्वप्ने प्रपश्यतिजनः स प्राप्नोत्युत्तमां श्रियम् ॥१३०॥ अशोक चंपकं स्वर्ण चंदनं च कुरंटकम् ॥ स्वप्ने यः पश्यति पुमान्स स्यालक्ष्मीसमन्वितः ॥ १३१ ॥ एलालवंगकर्पूरफलानि सुरभीणि च ॥ जातीफलं च खादेवा पश्येद्वा स भवेद्धनी ॥ १३२ ॥ कुन्दस्य मल्लिकायाश्च प्रसूनं यो नरोत्तमः ॥ स्वप्रमध्ये च लभते पश्येद्वा स भवेद्धनी ।। १३३॥ केतकीबकुलं चापि पाटलं पुष्पमेव च ॥स्वप्नमध्ये प्रपश्येद्यः स भवेधनधान्यवान् ॥ १३४॥ इक्षुवल्ली नागवल्ली यः स्वप्ने भक्षयेन्नरः ॥ लुंठेद्धस्ते तस्य धनं तितिणीफलबीजवत ॥ ।। १३५ ॥ स्वप्नमध्ये यस्य पुरोधातूनां चोपहारणम् ॥ सीसत्रप्वारकूटानां स्थाप्यते स सुखी भवेत् १३६॥ लौकि . कव्यवहारे ये पदार्थाः प्रायशः शुभाः॥सर्वथैव शुभास्ते स्युरिति नैव विनिश्चयः॥ १३७॥ परंतु ते शतपथः शुभं दद्युः फलं सदा ॥ अशुभा अपि ये केचित्तेऽपि सत्फलदायिनः · ॥ १३८ ॥ भवन्ति मनुजानां वै नात्र किंचिद्विरोधनम् ॥ यतो लौकिकभावेनाशुभत्वं तत्र धिष्ठितम् ॥ १३९ ॥ सुपारी, नारियलको जो स्वप्नमें देखताहै वह मनुष्य उत्तम लक्ष्मीको पाताहै ॥ १३० ॥ जो स्वप्नमें अशोक वृक्षको चम्पाको सुवर्णको चंदन और गुलाबांसको देखताहै वह पुरुष लक्ष्मीको पाताहै ।। १३१ ॥ इलायचीको लौंगको कपूरको और सुगन्धित फलोंको जाय फलको जो खाय वा देखे वह मनुष्य धनवान् होताहै ॥ १३२ ॥ जो पुरुष श्रेष्ठ कुंद ( माध्य) के बेलेके पुष्पोंको स्वप्नमें खाताहै अथवा देख वह धनवान् होताहै ॥ १३३ ॥ केतकीको मौलश्रीको लाल पुष्पको जो स्वप्नमें देख वह पुरुष धनधान्य वाला होताहै ॥ १३४ ॥ तालमखानेकी (गना) बेलको पानकी बेलको जो मनुष्य स्वप्नमें खाय उसके हाथमें इमलीके फलके बीजकी समान धन धन गि रताहै ॥ १३५ ॥ स्वप्नके बीच जिसके आगे धातुओंका ढेर सीसा रांग और पतिल स्थानपर किया जाताहै वह सुखी होताहै ॥ १३६ ।। लौकिकव्यवहारमें जो पदार्थ प्रायशः शुभहै वे सर्वथा शुभही हो ऐसा निश्चय नहीं ॥१३७॥ परन्तु वे शतयथमें प्राप्तहुए सदा शुभफल देतेहैं जो अशुभ भी हों वे श्रेष्ठफल देनेवाले होतेहैं॥१३८॥इस प्रकार मनुष्योंको शुभफल होताहै,इसमेंकोई विरोध नहीं For Private And Personal Use Only
SR No.020879
Book TitleVasantraj Shakunam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasantraj Bhatt, Bhanuchandravijay Gani
PublisherKhemraj Shrikrushnadas Shreshthi Mumbai
Publication Year1828
Total Pages596
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy