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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भाषाटीकासमेत। थापि वा ॥ स्वप्ने कुर्याद्यः पुमांश्च स राजा भवति ध्रुवम् ॥ ॥५३॥ स्वप्ने राजा भवेद्यश्च यश्च चौरो भवेत्पुनः ॥ पुनः स्वामी भवेद्यश्च स राजा स्यादसंशयः ॥५४॥ मूत्रैः पुरीपैलिप्ताङ्गः स्मशाननिलयो नरः ॥ खादेन्मूत्र पुरीषं च स भवेत्पृथिवी पतिः ॥५६॥ गौरानडत्समायुक्त यानमारुह्य यो नरः॥ उदीचीमथवा प्राची दिशं गच्छेत्स भूपतिः॥५६॥ स्वप्नमध्ये यस्य देहः केशविरहितो भवेत् ॥ तमथो नरशाVलं लक्ष्मीरायाति दासवत् ॥१७॥ स्वप्नमध्ये स्वस्य गेहं पातयित्वा पुनर्नवम् ॥ निबध्नाति पुमांस्तस्य व्यसनं लयमाप्नुयात्॥५८॥ स्वप्ने यो नीलवर्णी गां धनुर्वा पादरक्षणम् ॥ प्राप्नुयात्स प्रवासादै सत्वरं स्वगृहं विशेत् ॥ ५९॥ अपानद्वारतो यश्च जलपानं करोति वै ॥ स्वप्ने तस्य धनं धान्यं विपुलं जायते ध्रुवम् ॥६० ॥ आपादमस्तकं यश्च निगडर्ब ध्यते नरः॥ पुत्ररत्नं प्रपश्येत्स ध्रुवं तत्र न संशयः॥६॥ यो ग्राम नगरं वापि स्वप्ने यो वेष्टयेन्नरः॥ मंडलाधिपतिःस स्याद्राममुख्योऽथवा भवेत् ॥६२॥ निम्नायामथ भूम्यां यः घा स्वप्नमें जलपान घोडेपर चढकर करै वह निश्चय राजा होताहै ॥ ५३ ॥ जो स्वप्नमें राजा होकर फिर चोर होजाय और फिर स्वामी होजाय तो वह निश्चय राजा होताहै ॥ ५४॥जिस पुरुषके अंगमें स्वप्नमें मूत्रपुरीष लगजाय, या मरघटमें घरहोता दीखे तथा मूत्रपुरीषका भक्षण करे यह राजा होताहै ।। ५५ ॥ सफेद बैलसेयुक्त यानपर चढ़कर जो पुरुष उत्तरदिशाको अथवा पूर्वदिशाको जाय वह राजा होताहै ॥ १६ ॥ स्वप्नमें जिसपुरुषका शरीर केशरहितहो सिंहकी समान उस पुरुषको लक्ष्मी दासीकीसमान प्राप्त होतीहै ॥ ५७ ॥ जो स्वप्नमें अपना घर गिराकर नयाघर वनाताहे उस पुरुषके व्यसनका नाश होताहे ॥५८ ॥ जो पुरुष स्वप्नमें नीली गोको प्राप्तहो वा धनुषको वा पादरक्षा (जूते ) को प्राप्तहो वह परदेश जाकर शीघ्रही अपने घरमें आताहै || ५९ ॥ जो स्वप्नमें अपान मार्गसे जलपान करताहै. उसके निःसन्देह धनधान्यं बहुत होताहै ।। ६० ॥ जो पुरुष चरणसे मस्तकपर्यन्त बेडियोंसे बांधा जाय वह निःसन्देह पुत्ररूपी धनको प्राप्त होगा ।। ६१ ॥ जो स्वममें ग्राम पा नगरको घेरताहै वह मण्डलाधिपति होताहै अथवा ग्रामका मुखिया होताहै।। ६२॥ गहरी पृथ्वीमें जो गिरफर फिर उठे For Private And Personal Use Only
SR No.020879
Book TitleVasantraj Shakunam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasantraj Bhatt, Bhanuchandravijay Gani
PublisherKhemraj Shrikrushnadas Shreshthi Mumbai
Publication Year1828
Total Pages596
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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