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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भाषाटीकासमेत। (३) नमः ॥१४॥ इति मन्त्रान्सकृजापित्वा नत्वा च प्राक्छिराः स्वपेत् ॥ दक्षिणं पार्श्वमानम्य स्वप्नं चाथ परीक्षयेत् ॥१५॥ अथापरः स्वप्नप्रदः श्रीरुद्रमन्त्रः ॥ (ॐ नमो भगवते रुद्रा य मम कर्णरन्ध्रे प्रविश्य अतीतानागतवर्तमानं सत्यंबहिब हि.स्वाहा ॥२॥) इमं मंत्रं समुच्चार्यायुतवारं दशांशतः॥ तिलान्हुत्वा सिद्धमन्त्रो रात्रौ दर्भासने शुचिः॥१६॥जस्वा वामं पाश्चमधः कृत्वा धृतमनोरथः ॥ शयीत स्वप्न आगत्य देवः सर्वं ब्रवीति तम् ॥ १७॥ अथापरः स्वप्नप्रदो गणपतिमन्त्रः ॥ (ॐ त्रिजट लंबोदर कथय कथय कथय हुं फट् स्वाहा ॥३॥) कार्य विचिन्त्य प्रजपादष्टोत्तरशतं नरः॥ शयीत पश्चादशुभं शुभं वा कथयेद्विभुः ॥ १८॥ अथापरः स्वमप्रदो विष्णुमन्त्रः ॥ कार्पण्येतिम न्त्रस्यार्जुन ऋषिः । दण्डकं छन्दः । श्रीकृष्णो देवता। ( अमुक) कार्याकार्यविवेकस्वप्नपरीक्षार्थे जपे विनियोगः॥ नमस्कार है ॥१४॥ इन मंत्रोंको एकवार जपकर और पूर्वकी औरको शिर करके दाहिनेकरवट लेट कर शयन करे आर्थात सीधीबगलको नीचे कर सोचे और स्वप्नकी परीक्षा करैः ॥१५॥ अब दसरा स्वप्नका देनेवाला श्रीरुद्रका मन्त्र कहतेहै "ओं नमो भगवते रुद्राय मम कर्णरन्ने प्रविश्व जतीतानागतवर्तमानं सत्यं ब्रूहि ब्रूहि स्वाहा २" इस मंत्रको दश सहस्त्र जपकर दशांशतिलोका हवन कर सिद्धमंत्र वाला रात्रीमें पवित्र हो कुशाशनपर बैठे ॥ १६ ॥ इस मंत्रको जपकर मनमें कार्यको धारण करके वामपार्श्वको नीचे करके शयन करे तो स्वप्नमें आकर देवता उस्से सब कहताहै ॥१७॥ अब दूसरा स्वमका देनेवाला गणपति मंत्र कहतेहैं। “ओं त्रिजट लम्बो दर कथय कथय हुं फट् स्वाहा ३" कार्यको मनमें धारण कर इस मंत्रको १०८ वार जपै तो स्वप्नमें आकर देवता शुभ अशुभ जैसा हो वह सब कहताहै ॥ १८ ॥ अब दूसरा स्वप्नका देनेवाला विष्णुमंत्र कहतेहैं। ओं कपण्येति इसमंत्रका अर्जुन ऋषि दंङक छंद श्रीकृष्ण देवता अमुक कार्याकार्यके ज्ञान और स्वप्नकी परीक्षामें विनियोगहै (ओंकार्पण्येतियहमंत्र आर्थात् कृपणताके दोषसे मेरा स्वभाव हत होगयाहै मैं मूढबुद्धि होकर आपसे धर्म पूछताहूं हे कृष्ण जिसमें मेरा कल्याण हो सो आप मुझसे कहो मैं तुम्हारा शिष्यहूं तुम्हारी शरणहूं आप मुझे शिक्षा करें ओं ४ ।) इन मंत्रपदोंको कहकर चतुर मनुष्य पंचांगमें न्यास करै और पकान चित्त होकर विधिपूर्वक For Private And Personal Use Only
SR No.020879
Book TitleVasantraj Shakunam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasantraj Bhatt, Bhanuchandravijay Gani
PublisherKhemraj Shrikrushnadas Shreshthi Mumbai
Publication Year1828
Total Pages596
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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