SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 557
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ श्रीः॥ स्वप्नाध्यायः। प्रथमः कल्लोलः १. ॥श्रीगणेशायनमः।। श्रीनृसिंह रमानाथं गोकुलाधीश्वरं हरिम् ।। वन्दे चराचरं विश्वं यस्य स्वप्नायितं भवेत् ॥ १॥ स्व प्राध्यायं प्रवक्ष्यामि मुह्यन्ते यत्र मूरयः॥ नानामतानि संचिंत्य यथाबुद्धिबलोदयम् ॥ २ ॥ स्वप्नं चतुर्विधं प्रोक्तं दैविकं कार्यसूचकम् ॥द्वितीयं तु शुभस्वप्नं तृतीयमशुभं तथा ॥३॥ मिश्रं तुरीयमाख्यातं मुनिपुङ्गवकोटिभिः ॥ तत्रादौ दैविकस्वप्ने मंत्रसाधनमुच्यते ॥ ४॥ तदादौ कालयामानां विचारं कुर्महे वयम्।। तत्र च प्रथमे यामे स्वप्नं वर्षेण सिध्यति॥५॥ द्वितीये मासषदेन षद्भिः पक्षैस्तृतीयके ॥ चतुर्थे त्वेकमासेन प्रत्यूषे तद्दिनेन च ॥६॥ गोरेणूच्छुरणे चाथ तत्कालं जायते फलम् ॥ स्वप्नं दृष्टं निशि प्रातर्मुखे विनिवे __ गौरि गिरा गणपति सुमार, शंभुचरण शिरनाय । जगहितः स्वमाध्यायकी, भाषा लिखहुँ बनाय ॥ श्रीनृसिंह रमानाथ गोकुलके अधिपति भगवान्को प्रणाम करता हूं कि, यह चर अचर संबार जिनकी सत्तासे स्वप्नायित होरहाहै ॥ १ ॥ जिसमें बड़े बडे कवि मोहित होजातेहैं, उम्र स्वप्नाध्यायको कहता हूं और उसमें बुद्धिफेअनुसार अनेकोंमतोंका निर्णय करूंगा ॥ २ ॥ चार प्रकार के स्वप्न होतेहैं, देविक जो कार्यकी सूचना देनेवाले दूसरे शुभस्वप्न, तीसरे अशुभ ।। ॥ ३ ॥ और चौथे शुभ अशुभ मिलेहुए होतेहैं । ऐसा अनेकमुनियोंका मतहै, उसमें पहले दैविक स्वप्नमें मंत्रका साधन कहतेहैं ॥ ४ ॥ उसमें पहलेकाल और पहरका विचार करतेहैं रात्रिके पहले पहरमें देखाहुआ स्वप्न एकवर्षमें फल करताहै ॥ ५ ॥ दूसरे पहरमें देखादुभा छ: महीनेमें फल करताहै । तीसरे पहरमें देखाहुआ तीनमहीनमें । चौथे पहरमें देखाहुआ एकमहीनेमें और प्रभातमें देखाहुआ उसी दिन फल करताहै ॥ १ ॥ और गौवोंके चरनेको जातेसमय देखाहुआ स्वप्न तत्काल फल करताहै । रात्रीका देखाहुआ दैविक स्वप्न प्रातसमय गुरु For Private And Personal Use Only
SR No.020879
Book TitleVasantraj Shakunam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasantraj Bhatt, Bhanuchandravijay Gani
PublisherKhemraj Shrikrushnadas Shreshthi Mumbai
Publication Year1828
Total Pages596
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy