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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir शिवारुते स्थानस्थितप्रकरणम् । (५०९) सुरक्षितस्यापि मनुष्यलक्षैामस्य शीघ्र ग्रहणं विधत्ते ॥ त्रयं दिनानां दिवसावसाने शिवा रटंती परुषस्वरेण ॥७॥ दिश्वारटंती सकलासु रौद्रं भ्रमत्यखिन्ना परितः पुरं चेत् ॥ शृगालजाया खलु तद्ब्रवीति युद्धं महत्तत्र तथाभिघातम् ॥ ॥ ७५ ॥ ज्वालां विमुंचत्यतिरौद्रनादा समाकुला धावति या समंतात् ॥ रोमांचकंपौ जनयत्यकस्मात्कुर्याच्छिवा सा युवराजपातम् ॥ ७६ ॥रोमोद्गमं या जनयत्यकस्मात्फे इत्यति क्रूररवा नराणाम् ॥ मूत्रं पुरीषं च तुरंगमाणांसा सर्वदा स्यादशिवा शिवह ॥ ७७॥ ॥टीका ॥ सरक्षितस्येति ॥ दिवसावसाने परुषस्वरेण दिनानां त्रयं शिवा रटंती मनुष्यलक्षः सुरक्षितस्यापि ग्रामस्य शीघ्र ग्रहणं विधत्ते ग्रहं कुरुते ॥ ७४ ॥ दिवेति ॥ औटेण स्वरेण शृगालजाया सकलासु दिक्षु रौद्रं रदंती चेत्पुरं परितः अखिन्ना भ्रमति तदा खलु तत्र महाद्ध तथाभिघातं च ब्रवीति ॥ ७५ ॥ ज्वालामिति ॥ या अतिरौदनादा ज्वाला विमुंचति या समंतात्समाकुला धावति या अकस्माद्रोमांचकंपौ जनयति सा शिवा युवराजपातं कुर्यात् ॥ ७६ ॥ रोमेति ॥ या फे इति अतिक्रूररवा नराणां अकस्माद्रोमोद्गमं जनयति तुरंगमाणां मूत्रं पुरीषं चाकस्माजनयति सा शिवा इह अशिवा न श्रेष्ठा ॥ ७७ ॥ ॥ भाषा॥ समयमें पांचदिन ताई अत्यंत फेत्कार शब्द करे तो पुरुषनकी महान् हानि होय ॥७३॥ सरक्षित तस्योति ॥ दिनके अन्तमें कठोरस्वरकरके तीनदिन ताई शृगाली बोले तो लाखों मनुष्यनकरके रक्षा करोगयो होय तोभी वा ग्रामकू शीघही ग्रहण करै ॥ ७४ ॥ दिदिवति ॥ रोद्रस्वरकरके शृगाली सब दिशानमें बोले जो पुरके चारोंमेर दुःख विना भ्रमण करे तो महान् युद्ध और घात होय ॥ ७९ ॥ ज्वालामिति ॥ जो अतिरौद्रशब्द बोलती होय, ज्वाला मुखमेंसू निकासती होय, जो चारोंमेर आकुल होय, भागती होय. जो अकस्मात् रोम ठाढे होय, वा कंपायमान हायँ तो वो शृगाली युवराजको पात करे ॥ ७६ ॥ रोमेति ॥ जो शृगाली फे या प्रकार अति क्रूर शब्द बोले तो मनुष्यनकू अकस्मात् रोमांचको उदय करै घोडानकू मूत्र पुरीष अकस्मात् प्रगट करै वो शृगाली श्रेष्ठ नहीं॥७७१. For Private And Personal Use Only
SR No.020879
Book TitleVasantraj Shakunam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasantraj Bhatt, Bhanuchandravijay Gani
PublisherKhemraj Shrikrushnadas Shreshthi Mumbai
Publication Year1828
Total Pages596
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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