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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्वचेष्टिते यात्राप्रकरणम् । ( ४८३ ) पद्भ्यां क्षितिं तक्षति पश्चिमाभ्यामुडूलितो दीर्घतरोच्चनादः॥ वमत्यथाये हदक्षतांगो बिभेति वा यः स भयंकरः श्वा ॥ ॥ २०७ ॥ अग्रांत्रिणोर्वीमवदारयेद्रा प्रोच्चैः स्थितः प्रस्थितमीक्षते वा ॥ कंडूयते चोत्तममंगभागं यो जागरूकः कुरुते स सिद्धिम् ॥ २०८ ॥ लांगूल जिह्वा कटिपृष्ठभागान्प्रचालसम्मुखमेति हृष्टः ॥ कूजल्लिहपृष्ठवपुः सुचेष्टो यः श्वा स कार्येषु भवत्यभीष्टः ॥ २०९॥ ॥ टीका ॥ शीघ्रं यात्रां वक्ति यियासतः गंतुमिच्छतः पादौ लेढि जिव्रति वा तदा प्रणयात्मयाणभंगं ब्रवीति ॥ २०६ ॥ पद्रयामिति ॥ यदि पश्चिमाभ्यां पद्धय श्वा क्षितिं तक्षति तनूकरोति खनतीति यावत् । तक्ष तनूकरणे धातुः । कीदृक् उडूलितः धूलीदि । पुनः कीदृक् दीर्घतरोचनादः दीर्घतर उच्चश्च नादो यस्य स तथा अथ यो यक्षः अग्रे वमति वांतिं कुरुते हदते विष्ठां विधत्ते अक्षतांगः अक्षतशरीरो विभेति वास श्वा भयंकरो भजनको भवति ॥ २०७ ॥ अग्रेति ॥ यो जागरूक : अग्रत्रिणा अग्रवा देन उर्वी पृथ्वीमवदारयन्विकर्षयन्माचैः स्थितः प्रस्थितमीक्षते विलोकते अथ वा उत्तममंगभागं कंडूपति स सिद्धिं कुरुते ॥ २०८ ॥ लांगूलेति ॥ यः श्वा लांगूलजिह्वा कटिपृषभागान्प्रचालयन् हृष्टः सम्मुखमेति तथा यः कूजन्पृष्टवपुलिहन्सुचेष्टो भवति स वा कार्येषु अभीष्टः संमतो भवति । लांगूलं च जिह्वाच कटिपृष्ठभागचे - ॥ भाषा ॥ जो गमनकूं इच्छा करतो होय वा पुरुषके पाँवकूं चाटे वा सूत्रे तो स्नेहसूं गमनको भंग कहैंहैं ये जानना || २०६ ॥ पयांमिति ॥ जो श्वान पिछाडीके पावनकर के पृथ्वीक खोदतो होय, धूल से भरी होय अथवा जो श्वान अगाडी बमन करतो होय वा विष्ठा करतो होय शरीर जाको हीन और प्रहारयुक्त नहीं होय भयवान् होय तो वो श्वान भय प्रगट करें ॥ २०७ ॥ अग्रेति ॥ जो श्वान अगाडीके पाँव करके पृथ्वीकूं खोदै वा बहुत ऊंचेपै स्थित होत स्थित पुरुषनकुं देखतो होय अथवा उत्तम अंगकूं खुजावतो होय तो वो श्वान सिद्धी करै ॥ २०८ ॥ लांगूलेति ॥ जो श्वान पूंछ, जिह्ना, कटि, पृष्ठभाग इनें चलात प्रसन्नमुख होय सन्मुख आवे तैसेही शब्द करत पीठ शरीर इनें चाटतो हुयो सुंदर For Private And Personal Use Only
SR No.020879
Book TitleVasantraj Shakunam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasantraj Bhatt, Bhanuchandravijay Gani
PublisherKhemraj Shrikrushnadas Shreshthi Mumbai
Publication Year1828
Total Pages596
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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