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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (४५६) वसंतरामशाकुने-अष्टादशो वर्गः । विनामिषं यत्र च जागरूकाःकुति चिंता बहवो मिलित्वा।। उत्पद्यते निग्रहहेतुभूतं तत्राचिराद्विग्रहदौस्थ्यमुग्रम्॥११२॥ संछित्रपुच्छश्रवणो रुगातः कृशो विचितोऽभिमुखं प्रसर्पन्॥ कार्योधतेषु प्रविलोक्यमानः श्रेयोविधायी न हि सारमेयः ॥ ११३ ॥ निमज्य तोये स्ववपुर्विधुन्वन्कौलेयकश्चौरभयं करोति ॥ भषनभीक्ष्णं पथि मन्दिरे वा ग्रामेऽथवा चौरभयाय भूने ॥ ११४॥ ॥ टीका ॥ असौ पाथः यमस्य पुरं याति ॥ १११ ॥ विनेति ॥ यत्र च जागरूकाः श्वानः आमिषं मांसं विना बहवो मिलित्वा चिंतां कुर्वति तत्र अचिरात् स्तोककालेन नराणां निग्रहहेतुभूतं काराक्षेपकारणमुरमुत्कटं विग्रहदौस्थ्यं कलहकष्टमुत्पद्यते ॥ ११२ ॥ संछिन्नेति ॥ संछिन्नपुच्छश्रवणः कर्तितपुच्छकर्णः रुगातः आमयपीडितः कृशः दुर्बलः विचितः विशेषेण चिन्तातुरः अभिमुखं संमुखं प्रसर्पबागछन्सारमेयः कार्योद्यमेषु प्रविलोक्यमानः श्रेयोविधायी न भवति । श्रेयः कल्याणं विधातुं शीलः ॥ ११३ ॥ निमज्योति ॥ तोये निमज्य स्ववपुविधुन्वन्कौलेयकश्चौरभयं करोति । पथि मार्गे मंदिरे गृहे वा अथवा ग्रामे कौले रजमें लिहस रह्यो होय पाषाणकू आदिले वस्तु करके मुख जाको भन्यो होय ऐसो श्वान अगाडी आय जाय तो चारभयके अर्थ जाननो. जाके अगाडी श्वान हाडको टूक मुखमें लेकरके भंके तो पांथ पुरुष यमराजके पुरकू प्राप्त होय ॥ १११ ॥ विनेति ॥ जा जगह श्वान मांसविना बहुतसे मिलजाय तो चिंता करते होय तहां शीघ्रही मनुष्यनकू कारागृहमें पटकवेके योग्य बडो विग्रह कलह कष्ट प्रगट करै ॥ ११२ ॥ संच्छिन्नेति ॥ पूंछ कान जाके कटे होय रोग करके पीडित होय दुर्बल होय विशेषकर चिंतातुर होय ऐसो श्वान सम्मुख आवे और जे मनुष्य कार्यमें लगरहे होंय उनमांऊं देखे तो कल्याणको करबेवालो नहीं जाननो ॥ ११३ ॥ निमज्यति ॥ जलमें डब करके फिर अपने अंगकू हल हलावे तो श्वान चोरभय कर, मागन घरमें वा ग्राममें श्वान वारंवारं भंके तो राजाके चौरभवके अर्थ जाननो ॥ ११४ ॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020879
Book TitleVasantraj Shakunam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasantraj Bhatt, Bhanuchandravijay Gani
PublisherKhemraj Shrikrushnadas Shreshthi Mumbai
Publication Year1828
Total Pages596
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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