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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ( ४२२ ) www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वसंतराजशाकुने - सप्तदशो वर्गः । ॥ टीका ॥ मध्ये स्वरंती निर्भयत्वं ब्रूते २० बहिः स्वरंती अभिधाटीभयाय स्यात् २१ रात्रौ दीपं विध्या प्रयच्छतां स्वरंती प्रदीपनकं कथयति २२ अर्द्धरात्रे गृहमध्ये स्वरंती चौरं ज्ञापयति २३ गृहतः प्रविशतामग्रे स्वरंती अर्थलाभं कथयति २४ जिमतां भोजनभाजने पसंती अर्थलाभाय भवति ॥ २५॥ इति पल्लीविचारः ॥ "पल्ली भुजेऽपस ये च मस्तके स्वामिमानदा । पतंती कुरुते वामे लाभ हानिकरा करे ॥ १ ॥ करे च दक्षिणे व्याधि हयराज्यादिलाभदा । पृष्ठे उपद्रवं हेत्युदरे मिष्टान्नदा तु सा ॥२॥ नाभौ पुत्रफलं दत्ते कटौ गुह्ये च रोगकृत् । जानुयुग्मे सुखं स्थानं पादे हानि महाभयम् ॥ ३ ॥ पादांशे तु स्मृतं तज्ज्ञैश्चिंतापदांतगा भवेत् । अंगदक्षिणमारुह्य वामेनोत्तरति स्फुटम् ॥ ४॥ तदा हानिकरी ब्रूयाद्व्यत्ययेन तु लाभदा । चरणादूर्द्धांगी भूय यदारोहति मस्तके ॥ ५ ॥ प्राज्यं राज्यं तदा दत्ते पल्ली श्वेता विशेषतः । चिं तिताभ्यधिकं लाभं स्थिता भोजनभाजने ॥ ६ ॥ पादांगुलीषु संघातात्तदा तु पदवीं वदेत् ॥ सर्वमेतत्फलं दत्ते बृहती नासिकानुगा" ॥ ७ ॥ इति पल्लीविचारः ॥ ॥ भाषा ॥ बाहर शब्द करे तो अग्निज्वालान से भय करै २१ रात्रिमें दीपक तो दीप्तता करे. २२ अर्ध रात्रिमें घरमें बोलै तो चौर आवे, २३ अगाडी बोलै तो अर्थको लाभ करै २४ भोजन करतेनके पात्रमें लाभ होय. २५ For Private And Personal Use Only जोडते होंय शब्द करे घर में प्रवेश करे उनके थाली में पड़े तो धनको इति पल्लीविचारः || पल्ली जेमनी भुजापे और मस्तकपे पडे तो स्वामीसूं मान तो लाभको हानि करै १ जेमने हस्तपै पडे तो व्याधि वा पीठपीछे पडे तो उपद्रवकूं हरें, उदरपै पडे तो मिष्टान्न देवे. २ नाभिपै पडै तो पुत्रफल देवै. कटिपे और गुह्यस्थानपे पडै तो रोग करें. दोनों जानूपे पडे तो सुख और स्थान होय. पांवमें पडे तो हानि और महान् भय होय. ३ पावके अग्रभाग पडे तो चिंता आपदा मृत्युये करे. जेमने अंग चढे बांये अंगमाऊं उतरे ४ तो हानि करे. जो बांये अंगमाऊंसूं उतरे तो लाभ देवे. चरणसूं ऊपर मस्तक तांई चढजाय ९ तो बहुतसो राज्य देवे, जो सुफेद पल्ली होय तो विशेष फल करे, जो भोजनके पात्रमें गिरपडै तो चिंतनसूं भी अधिक लाभ करे. ६ पावनकी अंगुलीनपे पडै तो समूहसूं मार्ग चलावे. जो नासिका के अनुग होय तो समग्र फल देवे. ७ दिवावे. जो बायें हाथपै पडे हय राज्यादिकनको लाभ देवै.
SR No.020879
Book TitleVasantraj Shakunam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasantraj Bhatt, Bhanuchandravijay Gani
PublisherKhemraj Shrikrushnadas Shreshthi Mumbai
Publication Year1828
Total Pages596
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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