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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (४१८). वसंतराजशाकुने-सप्तदशी वर्गः। ॥ टीका ॥ ह्ये मित्रसमागमः । जंघयोरर्थहानिः स्याद्दे रोगभयं भवेत् ॥ १९ ॥ ऊरुयुग्मे षाहनाप्तिर्जानुयुग्मेऽर्थसंग्रहः । नीरोगी जंघयोश्चैव पादयोर्धमणं भवेत् ॥२०॥ ॥ इति स्थानफलम् ॥ पतनानंतरं यस्य रोहणं यदि जायते।पतने फलमुत्कृष्टं रोहणे निष्फलं भवेत्॥ ॥२१ ॥ रोहणे चोद्धवक्रे च स्कंधे बक्र प्रपातनम् । भवेद्यदि सुशीघेण तत्फलं जायते ध्रुवम् ॥ २२ ॥ मृत्युयोगे दग्धदिने वारे च यमघंटके । चंद्रेश्ष्टमस्थे धनगे जन्म:विषनाडिके ॥ २३ ॥ क्रूरग्रहे क्रूरलमे क्रूरै च यदि जायते । अष्टमस्थे क्रूरयुते विष्टिवैधृतिदूषिते ॥ २४ ॥ दुनिमित्ततया ज्ञाते निष्फला जायते ध्रुवम् ।स्पशमात्रे तयोः सद्यः सबैलं स्नानमाचरेत्॥२५॥सद्यो दानं विजानीयात्तिलमाष च दाक्षिणातत्सरूपं च यःशक्या दद्याच्च फलसार्पिषम्।२६पंचगव्यं तुसंग्राश्य कुर्या देवावलोकनम्।शास्त्रस्य वचनं कुर्याद्यदीच्छेदात्मनःशुभम् ॥२७॥इति पल्लीविचारः। ॥ भाषा ॥ गुह्यस्थानपै पडै तो मित्रको समागम होय. जंघानपै पडै तो अर्थकी हानि होय. गुदापै पडै तो रोगभय होय ॥ १९ ॥ दोनों घोटूनपै पडै तो वाहनकी प्राप्ति होय. जानु जो पीडुरी तापै पडै तो धनको संग्रह होय. जंघानके ऊपर पडै तो, निरोगी होय. पाँवनके ऊपर पडै तौ भ्रमण करावै ॥ २० ॥ ॥ इति शरीरस्थानफलम् ॥ जाके देहपै पल्ली पडै पडकर फिर अंगपै ऊंची चढ जाय तो पडबेके फल तो उत्कृष्ट और चढवेको फल निष्फल है ॥ २१ ॥ ऊपरमुखपै कंधापै चढजाय तो निष्फल और इनपै पतन होय तो फल शीघ्र होय ॥२२॥ मृत्युयोगमें दग्धदिनमें वा वारमें यमघंटमें आठमें चंद्रमा जन्मनक्षत्रमें ॥ २३ ॥ क्रूर ग्रहमें क्रूरलग्नमें आठमें क्रूरग्रहमें भद्रामें वैधतिमें ॥ २४ ॥ या करके इन दुनिमित्तनमें याको फल निष्फल होय जाय निश्चय या स्पर्शसं तत्काल सचैल वस्त्रसहित स्नान करे ॥२५॥ फिर तिल उडद दक्षिणा इनको दान करै पल्लीको स्वरूप सुवर्णको बनायकरके फल घृतसहित दान करै॥२६॥पंचगव्य प्राशन करे, फिर देव विष्णुको दर्शन करनो. जो अपनो शुभ इच्छा करे तो या रीतिसूं शास्त्रको वचन करे॥२७॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020879
Book TitleVasantraj Shakunam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasantraj Bhatt, Bhanuchandravijay Gani
PublisherKhemraj Shrikrushnadas Shreshthi Mumbai
Publication Year1828
Total Pages596
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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