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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चतुष्पदानां प्रकरणम् । ( ३८५) रुतेक्षणे ग्रामवलीमुखस्य जयाय नामग्रहणं भयाय ॥ इष्टा गतिर्दक्षिणतो न चेष्टा व्यासंगकारी गमनोयतानाम् ॥१९॥ ॥ इति वानरः॥ ॥टीका ॥ बावुपारष्टात्पतति तदा षण्मासमध्ये मरणमेति । चरणौ जिप्रति तदा रोगोत्पत्तिः । मस्तकं लिहति तदा राज्ञो भयं वक्ति । यदा तमुल्लंघ्य याति तदा मृतिः । यदा स्त्रीशिरो लिहति तदा भर्तुर्मृतिः। यदा स्त्रीहृदयं लिहति तदा पुत्रमृतिः । यदि स्त्रीचरणौ लिहति तदा श्वश्रूमृतिः। यदा भक्षणं करोति तदा मरणमुत्पद्यते। यदा त्वरितगत्या गृहादहिर्याति तदा रोगनाशः शत्रुनाशश्च ॥ १८॥ ॥इति मार्जारः॥ रुतेक्षणे इति ॥ ग्रामवलीमुखस्य वानरस्य रुतेक्षणे जयाय स्याताम् । नामग्रहणं भयाय स्यात् । तस्य गतिः दक्षिणत इष्टा न चेष्टा । यतो गमनोधतानां स व्यासगकारी स्यात् ॥ १९ ॥ ॥ इति वानरः॥ ॥भाषा॥ खाली मुख होय शब्द करें तो अशुभ है. और बिलाव नाना प्रकारके शब्द बोलते होंय और युद्ध करते होय वो निंदाके योग्य हैं. और ग्रंथमें ऐसो लिखोहै ॥ रात्रिमं ऊपर आय पड़े बिलाव तो छ: महीनामें वो मनुष्य मरजाय. जो बिलाव: पांव संघे तो रोगको उत्पत्ति होय जो मस्तककू चाटै तो राजाको भय होय. जो मनुष्यकू उलंघन करजाय तो वो पुरुष मरजाय. जो स्त्रीके मस्तककू चाटे तो वाके भर्तारंकी मृत्यु करै, जो स्त्रीके हृदयकं चाटै तो पुत्रकी मृत्यु होय, जो स्त्रीके चरणकू चाटै तो सासू मरै जो भक्षण करै तो मरण करे. जो शीघ्र गति करके बिलाव घरसूं बाहर चल्यो जाय तो रोगको नाश और शत्रुको नाश करै ।। १८॥ ॥ इति मार्जारः॥ रुतेक्षणे इति ॥ गमनमें उद्युक्त होय रहे उन पुरुषनकू वानरको शब्द देखना जयके अर्थ और नाम लेनो भयके अर्थ, वानरकी दक्षिणगति योग्य है, और मैथुनचेष्टा योग्य, नहीं ॥१९॥ ॥ इति वानरः॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020879
Book TitleVasantraj Shakunam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasantraj Bhatt, Bhanuchandravijay Gani
PublisherKhemraj Shrikrushnadas Shreshthi Mumbai
Publication Year1828
Total Pages596
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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