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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir काकरते पिंडाष्टकप्रकरणम्। (३१५) विधाय पूजां कुलदेवतानांमध्ये ततोऽष्टास्वपि दिक्षु देयम् । भक्तेन सर्दिधिमिश्रितेन पिंडाष्टकं प्राग्दिगनुक्रमेण॥१७४॥ पक्षीन्द्रवह्नयन्तकराक्षसेन्द्रान्विष्णुं विरिचिं धनदं महेशम् ॥ पूर्वादिकाष्ठाक्रमयोजितेषु न्यसेत्क्रमादष्टमापण्डकेषु ।।१७।। नमोयुतैः सप्रणवैश्च सर्वास्ततोऽर्चयेत्तानिजनाममंत्रैः ॥ अ र्घासनालेपनपुष्पधूपनैवेद्यदीपाक्षतदक्षिणाभिः ॥१७६ ॥ 'अभ्यर्चितेभ्यो विधिनोदितेन पिंडाष्टकं तत्तदनु द्विजेभ्यः॥ मंत्रेण संमंत्र्य निवेदनीयं कार्य विचिंत्यापसरेत्तु किंचित् ॥ ॥१७७॥ मंत्रः॥ॐ नमः खगपतये गरुडाय स्वाहा ॥ द्रोणाष्टकममुं पिंडं गृहाण त्वमशंकितः ॥ यथादृष्टंनिमित्तं च कथयाय स्फुटं मम ॥ १७८॥ ॥टीका ॥ विधायेति ॥ कुलदेवतानां पूजां विधाय ततो मध्येष्टसु दिक्षु सर्पिर्दधिमिश्रितेन भक्तेन प्राग्दिगनुक्रमेण पिंडाष्टकं देयम् ॥ १७४ ॥ पक्षीति ॥ पूर्वादिकाष्ठाकमयो जितेषु अष्टसु पिंडेषु पक्षीदवह्नयन्तकराक्षसेंदान् विष्णुं विरिचिंधनदं महेशंक्रमात न्यसेत् ।। १७५ ॥ नम इति ॥ ततो निजनाममंत्रैनमायुतैः सप्रणवैः तान्सर्वानर्चयेत् काभिः असिनालेपनपुष्पधूपनैवेद्यदीपाक्षतदक्षिणाभिः व्याख्या पूर्ववत् १७६ ॥ अभ्यर्चितेभ्य इति ॥ तत्पिडाष्टकं विधिनोदितेनाभ्यचितेभ्यो द्विजेभ्यः अनु पश्चात् मंत्रेण संमंत्र्य कार्य विचित्य निवेदनीयं ततः किंचिदपसरेत्॥१७७॥मंत्रः॥ ॐ नमः खगपतये गरुडाय स्वाहा ॥ द्रोणेति ॥ त्वम् अशंकितः द्रोणाष्टकममुं ॥ भाषा॥ ॥ विधायेति ॥ फिर प्रथम कुलदेवतानको पूजनकरके ता मंडलके मध्यमें आठों दिशानमें घी दही भात इनकरके पूर्वदिशाकू आदिले क्रमकरके पिंडाष्टक देवै ॥ १७४ ॥ पक्षीन्द्रति ॥ पूर्वकू आदिले आठो दिशानमें युक्त किये जे आठ पिंड तिनमें क्रमसूं पक्षींद, वह्नि,, अन्तक, राक्षसेंद्र, विष्णु, विरिंचि, धनद, महेश इन आठ देवतानकू स्थापन करै ॥ १७५ ॥ ॥ नम इति ॥ आदिमें प्रणव अन्तमें नमः बीचमें नाम ॐ गरुडाय नमः या रीतसुं मन्त्रनकरके संपूर्ण देवतानको अय, आसन, चन्दन, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य, अक्षत, दक्षिणा इन करके पूजन करै ॥ १७६ ॥ अभ्यर्चितेभ्य इति ॥ पक्षीनकू पूजन करतापीछे मंत्रसू पिंडाष्टककू अभिमंत्रण करके अपनो कार्य विचार करवो. पिंडाष्टक पक्षीनके अर्थ निवेदन करके कछुक पेंड पीछे हट औवै ॥ १७७ ॥ ॐ नमः खगपतये गरुडाय For Private And Personal Use Only
SR No.020879
Book TitleVasantraj Shakunam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasantraj Bhatt, Bhanuchandravijay Gani
PublisherKhemraj Shrikrushnadas Shreshthi Mumbai
Publication Year1828
Total Pages596
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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