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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir काकरुते यात्राप्रकरणम् । (३०९) पूर्वण खादन्सुखवित्तवृद्धिं करोति वह्वेर्दिशि वह्निभीतिम् ॥ काकोऽननाशं दिशि दक्षिणस्यां नैर्ऋत्यगो विड्वरकृत्प्रदिष्टः॥ ॥१५३॥जलेशदेशेऽभिमतार्थवृष्टी वायोर्दिशीतिप्रभवाल्पवृष्टी ।। सौम्ये सुखारोग्यसमाहितार्थानीशानदेशे वितरत्यभीष्टम् ॥१५४॥ बलौ विलुप्ते करटैः समंतात्कार्य विमिश्रं प्रविभावनीयम् ॥ बलिं विकीर्यापि न भक्षयति यदा तदानी भयदा भवंति ॥ १९५॥ क्षीरद्रुमारामचतुष्पथेषु सरित्समीपत्रिदशालयेषु ॥ देयो बलिभूतदिनाष्टमीषु कुल्मापदध्योदनतंडुलायैः॥ १५६॥ टीका ॥ नाथाय बलिं गृहंतु मे स्वाहा इति ॥ उदीर्येति ॥ प्रथमं स्वं स्वकीयं कार्यमुदीर्य ततः प्रदेशादपसृत्य निश्चलपाणिपादः करटस्य चेष्टां स्पष्टीकृतागामिशुभाशुभार्थामिति स्पष्टीकृताः आगामिशुभाशुभार्थाः यया तां संलक्षयेत् ॥१५२॥ पूर्वेणेति ॥ पूर्वेण खादन्सुखेन वित्तवृद्धि करोति वर्दिशि आमेय्यां दिशि वह्निभीति करोति दक्षिणस्यां दिशि काकः अर्थनाशं करोति नैर्ऋत्यगः विड्वरकृत्पदिष्टः ॥१५३॥ जलेशेति ॥ जलेशदेशे प्रतीच्यां दिशि अभिमतार्थवृष्टी स्याताम् वायोर्दिशि ईति प्रभवाल्पवृष्टी स्यातां सौम्ये उदीच्यां दिशि सुखारोग्यसमीहितार्थान्करोति।ईशानदेशेऽभीष्टं वितरति ॥ १५४ ॥ बलाविति ॥ करटैः समंतादलौ विलुप्ते विमिभं कार्य परिभावनीयम् बलिं विकीर्यापि चेत्काका न भक्षयंति तदा भयदा भवंति। ॥ १५५ ॥ क्षीर इति॥ क्षीरद्रुमारामचतुष्पथेष्विति क्षीरदुमा वटप्रभृतयः आराम ॥ भाषा ॥ शुभ अशुभकी कहवेवाली ताय लक्षणा करै ॥ १५२ ॥ पूर्वेणेति ॥ पूर्वदिशामें जो काक खावतो दीखै तो सुख वित्तकी वृद्धि करै. अग्निकोणमें दखै तो अग्निको भय करै दक्षिण दिशामें दीखै तो अन्नको वा अर्थको नाश करे. और नैऋत्यकोणमें दीखै तो धनवान् करै ॥ १५३ ॥ जलेशेति ॥ वरुणदिशामें दखै तो वांछित अर्थ और वृष्टि करें, वायुकोणमें दीखे तो अल्पवृष्टि होय. उत्तरदिशामें दीखै तो सुख आरोग्य वांछित अर्थ करै, और ईशान दिशामें दीखे तो वांछित अर्थ करै ।। १५४ ॥ बलाविति ॥ जो काकनकरके चारोंओरसं बलिपिंड लुप्त हो जाय तो कार्य मिलवां विचारनो योग्य है. और जो बलिपिंडकू विखेरदे भक्षण नहीं करै तो भयके देवेवारो जाननो ॥ १५५ ॥ क्षीरद्रुमेति ॥ जामें दूध For Private And Personal Use Only
SR No.020879
Book TitleVasantraj Shakunam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasantraj Bhatt, Bhanuchandravijay Gani
PublisherKhemraj Shrikrushnadas Shreshthi Mumbai
Publication Year1828
Total Pages596
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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