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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir काकरुते स्थानस्थितप्रकरणम् । (२९७) विघातमाहुर्बहुवर्गसंस्था रात्रौ रुवंतो जनताविनाशम् ॥ लोकं च चंचूचरणप्रहारैरुद्धजयंतः परचक्रवृद्धिम् ॥ ११३॥ यः स्नाति धूल्यांबु विलोक्य रौति वृष्टिं समाशंसति वायसोऽसौ ॥ जलस्थलप्राणविपर्ययेण वर्षासु वृष्टिर्भयमन्यदा तु॥ ११४ ॥ मध्यंदिने वेश्मनि यस्य काको विरौति रौद्रं विधुनोति चांगम् ॥ हरंति चौरा द्रविणानि तस्य ध्रुवं तथान्यो भवति प्रमादः ॥ ११५ ॥ रुवत्रहृष्टस्तृणपर्णवको हुताशभीति करटः करोति ॥ स्यात्प्रस्थितस्याप्यथवा स्थितस्य दुःखं प्रभूतं दिवसत्रयेण ॥११६॥ ॥ टीका ॥ सव्यापसव्यं भ्रमणाद्भयं वदति ॥ ११२ ॥ विघातमिति ।। बहुवर्गसंस्थाः वि. घात विनाशमाहुः बहव एकीभूता इत्यर्थः रात्रौ रुवंतो जनताविनाशं जनसमूहनाशमाहुः चंचूचरणप्रहारैः लोकमुद्देजयंतो दुःखदातारः परचक्रवृद्धिमाहुः११३॥ य इति ॥ यःधूल्या रजसा स्वाति अंबु विलोक्य रौति असौ वायसः वृष्टिं समाशंसति जलस्थलप्राणविपर्ययेण सुवृष्टिर्भवति अन्यदा तु भयं भवति ॥११यामध्यमिति ॥ यस्य वेश्मनि मध्यदिने काकः रौद्रं विरौति अंगं विधुनोति च तस्य चौरा द्रविणानि हरंति तथा ध्रुवमन्यः प्रमादोऽनर्थः स्यात् ॥ ११५ । रुवनिति॥ तृणपर्णवक्र: रुवनहृष्टः करटः हुताशभीति करोति तथाविधे करटे प्रस्थितस्य वा ॥भाषा॥ भय कहैहै ॥ ११२ ॥ विघातमिति ॥ वहुतसे इकट्ठे होयँ तो विघात करें. और रात्रिमें बोले तो जनसमूहको नाश करै. और चोंच और चरण इनको प्रहार करतो होय तो लोककू उद्वेग करे. और शत्रुनकी सेनानकी वृद्धि करै ॥ ११३॥ य इति ॥ जो काक धूलमें स्नानकरै जलंक देखकर शब्द करे तो दृष्टि करे. और जल स्थल प्राण इनकी विपरीतता करके अर्थात् जलमें न्हाय करके थलमें देखके शब्द करै तो सुवृष्टि होय. और प्रकार भय होय ॥ ११४ ॥ मध्यमिति ॥ जाके घरमें मध्याह्न समयमें काक रौद्रशब्द करै अंगकू कंपायमान करै तो ता पुरुषके चौर धन हरण करें. तैसेही प्रमाद होय ॥ ११५ ।। ॥रुवनिति ॥ तृण, पतोआ ये मुखमें होय तो काक अग्निकी भीति करै, जो प्रस्थानकरके चल्यो होय वा कहूं स्थित होय ता पुरुषकू तीन दिवसमें बहुत दुःख होय For Private And Personal Use Only
SR No.020879
Book TitleVasantraj Shakunam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasantraj Bhatt, Bhanuchandravijay Gani
PublisherKhemraj Shrikrushnadas Shreshthi Mumbai
Publication Year1828
Total Pages596
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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