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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२८८) वसंतरानशाकुने द्वादशो वर्गः । पृष्ठे पुरो वा नवगोमयस्थो वादिषु क्षीरतरुष्वपीह ॥ स्थितो रुवन्भोजनपानमिष्टं विष्टां च कुर्वन्वितरत्यवश्यम्॥ ॥ ८० ॥ अन्नायवर्चः फलमूलपुष्पमांसादिभिः पूर्णमुखः सदैव ॥ स्यादृष्टमात्रोऽभिमतार्थसिद्धयै मिष्टान्नभोज्याय मुदे च काकः ॥ ८१ ॥ नारीशिरःपूर्णघटस्थितस्य काकस्य शब्दैवनिताधनाप्तिः। शय्याधिरूढस्य तु तस्य शब्दैः समागमः स्यात्स्वजनेन सार्धम् ॥ ८२ ॥ गोपृष्ठदुर्वातरुगोमयेषु तुंडं विधर्षनवलोकितोऽग्रे॥ आहारमन्यस्य तथा ददानो ददाति भोज्यं बलिभुग्विचित्रम् ॥ ८३॥ ॥ टीका॥ धनाय भवति युग्मशब्दः यदा रौति तदा स्त्रियं यच्छति ॥ ७९ ॥ पृष्ठे इति ॥ पृष्ठे तथा पुरी नवगोमयस्थः वटादिषु क्षीरतरुषु इह स्थितो रुवन्भोजनपानमिष्टं वि तरति विष्ठां च कुर्वन्नवश्यमिति भावः ।। ८० ॥ अन्नाद्यवर्च इति ॥ अन्नाद्यवर्चः फलमूलपुष्पमासादिभिः पूर्णमुखः काकः दृष्टमात्रः सदैवाभिमतार्थसिद्धयै स्यात् तथा मिष्टान्नभोज्याय मुदे च भवति ॥८१॥ नारीति ॥ नारीशिरःपूर्णघटस्थितस्य काकस्य शब्दैर्वनिताधनाप्तिः स्यात् शय्याधिरूढस्य तु तस्य शब्दैः स्वजनेन सार्ध समागमः स्यात् ॥ ८२ ।। गोपृष्ठ इति ॥ गोपृष्ठदूर्वातरुगोमयेषु तुंड विघर्षनग्रे ॥भाषा॥ तो स्त्रीप्राप्ति करै ॥ ७९ ॥ पृष्ठ इति ॥ पठि पीछे वा अगाडी नवीन गोबरपै बैठो होय वडकू आदिले दूधवान् वृक्षपै स्थित होय बोले तो भोजनपान वांछित करे जो वीट करतो होय तो अवश्य भोजनादिक करै ॥ ८० ॥ अन्नाद्यवर्च इति ॥ अन्नादिक फल, मूल, पुष्प, मांसादिकनकरके मुख भरो होय तो काक दीखबे मात्रसूही वांछितसिद्धि करे और मिष्टान्नभोज्यपदार्थ हर्ष होय ॥ ८१ ॥ नारीति ॥ स्त्रीके मस्तकपै और भरे हुये घटपै जो काक स्थित होयकर बोले तो स्त्रीकी और धनकी प्राप्ति करै. और शय्याके ऊपर बैठके बोले तो आप्तजनोंसे समागम होय. ॥ ८२ ॥ गोपृष्ठेति ॥ गौकी पीठकू आदिले पीठनपै दुर्वापै वृक्षपै गोवरपे बैठ चोंच घिसतो जाय अगाडी कू देख रह्यो होय और कू For Private And Personal Use Only
SR No.020879
Book TitleVasantraj Shakunam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasantraj Bhatt, Bhanuchandravijay Gani
PublisherKhemraj Shrikrushnadas Shreshthi Mumbai
Publication Year1828
Total Pages596
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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