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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रस्तावना. शाकुनविषयमें शकुनवसंतराज बहुत योग्य है. यामें नानाप्रकारक शकुन कहेहैं । यह शकुनशास्त्र प्राचीन देवऋषिप्रणीत है । पूर्व जो अंधकासुरके वध उद्युक्त हुये जब शिवजीने शकुन देखे तब ये शकुन प्रवर्त हुये. तापीछे तारकासुरके संग्रामसमयमें तारकासुरके वैरी स्वामिकार्तिकजीके अर्थ शिवजीने शकुननको उपदेश दियो । तापीछे जंभासुरके वधके लिये उद्युक्त होय रह्यो इंद्र ताकू स्वामिकार्तिकजी शकुननको उपदेश करते हुये ॥ .. तापीछे इंद्र कालांतर में कश्यपजीकू शकुन देतो हुयो और कश्यपजीने जा समयमें गरुडजी अमृत हरवे चले तब गरुडजीकू शकुननको उपदेश कियो । और शिवजीने अत्रि, गर्ग, भृग्वादिकनकू आदिले मुनीनकू शकुन कहे । भृग्वादिकमुनिनने थे शकुन प्राणीनके कल्याण के लिये कहे ये शकुन महेश्वर, गर्ग, शुक्र, सहदेव, भृयादिकनने प्रगट किये हैं. यातें ये शकुन सत्य हैं ॥ शकुन जाननेवाले पुरुषकी कष्टसू रक्षा, सुंदर वृत्ति, जीयिका और या लोक परलोकके सारभूत शकु. ननके प्रभावते त्रिवर्गकी वृद्धि ये होय हैं । विजयराजके पुत्र श्रीशिवराज और वसंतराज ये दो हुये, तामें वसंतराज पृथ्वीमें विख्यात हुये. तो मिथिला पुरीके राजा चंद्रदेवने प्रार्थना कीनी तब भट्ट वसंतराजने माहेश्वर सार और सहदेवकृत शास्त्रमेंसू सार और बृहस्पति, गर्ग, शुक्र, भृग्यादिकनने कहे जे शास्त्र उनमेंसू सार ग्रहण कर ये ग्रंथ कियो और पादशाह श्रीअकबर जलालुद्दीनके समयमें श्रीशाहेिराज नाम राजाकी प्रार्थनासू वसंतराजकी टीका श्रीभानुचंद्रने करी ॥ या शकुनशास्त्रकर समस्त कार्य जाने जान्यो. ऐसो मनुष्य कष्टरूपी कूपमें नहीं पडै इंद्रियनकर देखये सुनवेमें नहीं आवे ऐसे कार्यनमें शास्त्रही दिव्यचक्षु है. जैसे दिव्यदृष्टि करके दखि है तैसेही शास्त्र करक सब जान्यो जाय है. शकुनशास्त्रको जानवेवारो मनुष्य है; सो मेरो ये कार्य कष्टसहित होयगो वा कष्टरहित होयगो ऐसो शकुनझू जान करकै निःसंदेह कार्य करवे प्रर्वत्त होय है. और ज्योतिःशास्त्रादिकनकरके जडीकृत मनुष्य हैं उनको ये शकुनशास्त्र प्रगट हुयो है. चमत्कार रसको आधिक्य जामें ऐसो औषधरूप है और वेदनके अर्थनकरकै शोभित “वसंतराज" नाम करके प्रसिद्ध ऐसो ये शकुनको ग्रंथ तामें द्विपद, चतुष्पद, षट्पद, अष्टपद, अनेकपद, अपद इन सर्व जंतुनके नानाप्रकारके शकुन यामें कहे हैं ॥ या ग्रंथमें २० वर्ग हैं । १ प्रथम वर्गमें शकुनकी श्लाघा और शिवनीकरके मनुष्यनकू उपदेश कह्यो। २ द्वितीयवर्गमें शास्त्रसंग्रहनाम तामें वर्गनको अनुक्रम कह्यो। ३ तृतीयवर्ग अभ्यर्चननाम पूजनका है। ४ चतुर्थ वर्ग मिश्रितनाम तामें शकुननके अनेक भेद मिलहुये हैं। ५ पंचमवर्ग शुभाऽशुभ नाम है । ६ छठे वर्गमें मनुष्यनके शकुन हैं। ७ सातवें वर्गमें पोदकीके शकुन कहेहैं। ८ आठवें वर्गमें पक्षिनको विचारस्वरूप कह्यो है । ९ नवमवर्गमें चाष नाम नीलकंठको शकुन है । १० दशम वर्ग में खंज. नको शकुन है। ११ न्यारहवें वर्ग में मलारीके शकुन हैं। १२ बारहवें वर्गमें काकके शकुन है । For Private And Personal Use Only
SR No.020879
Book TitleVasantraj Shakunam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasantraj Bhatt, Bhanuchandravijay Gani
PublisherKhemraj Shrikrushnadas Shreshthi Mumbai
Publication Year1828
Total Pages596
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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