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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२४२) वसंतराजशाकुने-अष्टमो वर्गः। शब्दायमानौ यदि तुल्यकालं कपिजलौ दक्षिणवामसंस्थौ। गंतुर्भवेतां पथि तोरणं तत्सर्वार्थसिद्धिप्रदमुद्यमेषु ॥२९॥ कृष्णतित्तिरिरितीह पतत्री वृत्ततित्तिरिरिति प्रथितो यः ॥ यश्च पक्षिषु मतोऽधिपमल्लो गौरतित्तिरिसमःशकुनेन॥३०॥ ॥ इति कपिजलादयः ॥ खगोत्र यौलावकनामधेयः खगौ चकोर ककराभिधानौ ॥ त्रयोऽपि ते तित्तिरितुल्यचेष्टाः पुरोव्रजंतो बहवोऽर्थसिद्धयै॥३१॥ ॥ इति लावकादयः॥ ॥टीका॥ पुनः व्योम निरीक्ष्यमाणः निरीक्षितः तित्तिरिः अर्थनाशं करोति ॥ २८ ॥ शब्दायमानेति ॥ यदि कपिजलौ वामदक्षिणसंस्थौ तुल्यकालं शब्दायमानौ गंतुर्भवेता तत्पथि तोरणं स्यात् उद्यमेषु सर्वेषु सिद्धिप्रदं भवति ॥ २९॥ कृष्ण इति ॥ इह यः पतत्री कृष्णतित्तिरिरिति यः वर्ततेसः वृत्ततित्तिरिरिति प्रथितः यश्च पक्षिषुमतोऽधिपमल्लो गौरतित्तिरिः एते त्रयोऽपि शकनेन समाः भवंति ॥ ३०॥ ॥इति कपिजलादयः॥ ॥ खग इति ॥ अत्र यः खगः लावकनामधेयः वर्तते यौ खगौ चकोरककराभिधानौ त्रयोऽपि ते तित्तिरितुल्यचेष्टा भवंति पुरो ब्रजंतो बहवः अर्थसिद्धयै स्युः३१ ॥ इति लावकादयः॥ ॥ भाषा ॥ अयुग्मनाम ऊना संख्या शब्दकरै तित्तिरी समृद्धि करें फिर आकाशमें देखतो होय तो अर्थनाश करै ॥ २८ ॥ शब्दायमानाविति ॥ गमनकर्ताके जो दोय कापिंजल वामदक्षिण दोनोंभागमें स्थित होयँ एकसंगशब्दकरैं मार्गमें तोरण होय संपूर्ण उद्यमनमें असिद्धि होय ॥ २९ ॥ कृष्ण इति ॥ जो कालो तित्तर है वाकूही वृत्ततित्तिरि कहै. जो पक्षीनमें अधिपहै. मल्ल हैं. वो गौरतित्तिार है ये तीनों शकुनमें समहैं ॥ ३० ॥ ॥ इति कपिजलादयः ॥ ॥ खग इति ॥ जो लावकपक्षी चकोर कृकरपक्षीकर ढोंक करक करेदु ये कृकरके भेद है ये तीनों पक्षी तित्तरकीसी इनकी चेष्टा है. ये अगाडी गमन करें तो बहुत अर्थ सिद्धिकरें ॥ ३१ ॥ ॥ इति लावकादयः ।। For Private And Personal Use Only
SR No.020879
Book TitleVasantraj Shakunam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasantraj Bhatt, Bhanuchandravijay Gani
PublisherKhemraj Shrikrushnadas Shreshthi Mumbai
Publication Year1828
Total Pages596
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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