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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२३४) वसंतराजशाकुने-अष्टमो वर्गः। स्थानेषु सर्वेष्वपि चक्रवाकयुग्मं समृद्धयै खवीक्षणाभ्याम्।। विच्छद्यमानं सविषादचेष्टमार्तस्वरं स्याद्विपदे तदेव॥८॥ ॥इति चक्रवाकः॥ इष्टार्थसिद्धिः सकलासु दिक्षु ससारसद्वंदविलोकनेन ॥ श्रुवास्य पृष्ठे निनदं न गच्छेत्सिद्धयत्यभीष्टग्रह एव यस्मात् ॥९॥ वामेन योषिद्धनलाभकारिंशब्दस्तथाग्रे नृपतोऽर्थलब्ध्यै।पार्श्वद्वये सारसयुग्ममेकं कृतारवं जल्पति कन्यकाप्तिम् ॥ १०॥ यः सारसाभ्यां युगपद्विरावः कृतोऽचिरेण क्रमतोपि वामः ॥ स वेदितव्यः कथितोऽर्थकारी कौंचद्वयस्याप्ययमेव मार्गः॥११॥ ॥ टीका ॥ स्थानेष्विति ॥ सर्वेष्वपि स्थानेषु रववीक्षणाभ्यां चक्रवाकयुग्मंसमृद्धयै भवति तदेव विक्षिप्यमानं सविषादचेष्टं आर्तस्वरं विपदे स्यात् ।। ८॥ ॥ इति चक्रवाकः ॥ इष्टार्थ इति । सकलासु दिक्षु सारसद्वंदविलोकनेन इष्टार्थसिद्धिः स्यात् । पृष्ठे अस्य निनदं श्रुत्वा न गच्छेत् यस्मात् गृहे एव अभीष्टं सिध्यति ॥९॥ वामेनेति ॥ वामेन सारसबंद्धं योषिद्धनलाभकारि स्यात् तथाग्रे शब्दः नृपतेः अर्थलब्ध्यै स्यात् पार्श्वद्वये एकं सारसयुग्मं कृतारवं कन्यकाप्ति जल्पति ॥ १० ॥ य इति ॥ ॥ भाषा ॥ ॥ स्थानेष्विति ॥ चक्रवाकको युगल सर्व स्थानमें देखे वा शब्द करै तो समृद्धि कर वोही जो दुःखी होय चेष्टा कर रह्यो होय आर्तस्वर करतो होय तो मनुष्यकू बिपदा करै ॥ ८ ॥ ॥ इति चक्रवाकः ॥ ॥ इष्ठार्थ इति ॥ सारसको जोडा सर्व दिशानमें देखतो होय तो इष्टार्थ सिद्धि करै और जो पीठपीछे सारसके युगलको शब्द श्रवणकरके गमन न करै याते घरमेंही अभीष्टसिद्धि होय ॥९॥ वामनेति ॥ सासरको युगल वामभागमें शन्द करै तो स्त्री धन इनको लाभ करे तैसेही अगाडी प्रश्न करै तो राजाकी प्रशांतिके अर्थ होय और दोनो पसवाडे. नमें शन्द कर एकही सारसको युगल तो कन्या प्राप्त करै ॥ १० ॥ य इति ॥ जो For Private And Personal Use Only
SR No.020879
Book TitleVasantraj Shakunam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasantraj Bhatt, Bhanuchandravijay Gani
PublisherKhemraj Shrikrushnadas Shreshthi Mumbai
Publication Year1828
Total Pages596
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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