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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( २५६ ) वसंतराज शाकुने - अष्टमो वर्गः । द्वितीeप्रहरे शांता रुजं जल्पति पांडवी || प्रदीप्तध्वनिनावाच्यां मृत्युं वाथ धनक्षयम् ॥ १३ ॥ राजप्रासादमाख्याति शांता यामे तृतीयके | दीप्तस्वरेषु दुर्गाया भूपतिर्याचते धनम् ॥ १४ ॥ शांता कांचनरत्नानि प्रदत्ते दक्षिणाश्रिता ॥ चतुर्थे प्रहरे दीप्ता स्वजनैरल्पकं कलिम् ॥ १५ ॥ प थिकः पीडितोऽभ्येति प्रातः शांतकरैः स्वरैः || दीप्तस्वरैस्तु नैऋत्ये कुर्यात्तस्यैव पंचताम् || १६ || द्वितीयप्रहरे शांता चौराणां भयमादिशेत् || दुर्गहानिकरी दीप्ता दुर्गा रक्षादिगाश्रिता ॥ १७ ॥ ॥ टीका ॥ सति ॥ १२ ॥ द्वितीयेति ॥ पांडवी द्वितीयप्रहरेऽवाच्यां दक्षिणस्यां शांता स्यात्तदा रुजं जल्पति प्रदीप्तध्वनिना मृत्युं वाथ धनक्षयं करोति ॥ १३ ॥ राजेति ॥ तृतीयके यामे दक्षिणस्यां दिशि शांता दुर्गा राजप्रासादं राजगहमाख्याति कथयति दुर्गायाः दीप्तस्वरेषु सत्सु भूपतिः धनं याचते ॥ १४ ॥ शांता इति ॥ चतुर्थे प्रहरे दक्षि श्रिता शांता पदकी कांचनरत्नानि प्रदत्ते दीप्ता स्यात्तदा स्वजनैरल्पकं कलिं करोति ॥ १५ ॥ पथिकेति । प्रातः प्रथमप्रहरं नैर्ऋत्ये दुर्गा शांत करैः खरैः पथिकः पीडितोऽभ्येति आगच्छति तु पुनः दीप्तस्वरैस्तस्यैव पथिकस्यैव पंचतां मृत्युं कुर्यात् ॥ १६ ॥ द्वितीयेति ॥ द्वितीयप्रहरे रक्षोदिगाश्रिता शांता दुर्गा चौरा ॥ भाषा ॥ ॥ नकूं लाभ करे. प्रदीप्ता होय तो निश्चय गोगृह करे ॥ १२ ॥ द्वितीयेति ॥ दूसरे प्रहरमें दक्षिणदिशामें पांडवी शांता होय तो रोग करै प्रदीप्तध्वनिकरके मृत्यु वा धनको क्षय करे ॥ १३ ॥ राजेति ॥ तीसरे प्रहरमें दक्षिणदिशा में दुर्गाशांता होय तो राजगृहकी प्राTHकरै और दुर्गाके प्रदीप्तस्वर होंय तो राजा धनकी याचना करे १४ ॥ शांता इति ॥ चौथेप्रहरमें दक्षिणदिशामें शांता दुर्गा होय तो सुवर्ण रत्न देवे और दीप्ता होय तो स्वजननकरके अल्पकलह करावे ॥ १९ ॥ पथिकेति ॥ प्रथम प्रहरमें करे तो मार्गीपीडायमान होय घर आवे और दीप्तस्वरकरती करे ॥ १६ ॥ द्वितीयेति ॥ दूसरे प्रहर में नैर्ऋत्य में शांतादुर्गा चौरनको भयकरै और दीप्ता नैऋत्य कोण में दुर्गाशांतस्वर होय तो ता मार्गीकी मृत्यु For Private And Personal Use Only
SR No.020879
Book TitleVasantraj Shakunam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasantraj Bhatt, Bhanuchandravijay Gani
PublisherKhemraj Shrikrushnadas Shreshthi Mumbai
Publication Year1828
Total Pages596
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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