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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पोदकीरते गर्भप्रकरणम् । (१८५) तारापक्षी गर्भसंभूतिहेतुर्यद्वा गृह्णन्पुष्पपत्रे फलं वा ॥ गर्भ- . स्रावं वामयायी विधत्ते यद्वा मुंचन्पुष्पपत्रं फलं वा॥२७३॥ अधःप्रपातो वमिमूत्रविष्ठागर्भप्रणाशं विदधात्यवश्यम् ॥ सम्मार्टि वामेन यदा यदंगं भवेत्स गर्भावयवो विहीनः॥२७४॥ गर्भप्रश्श्रेयावतोदक्षिणेन श्यामा शब्दानुचरत्युच्चवाचा ॥ नार्या गर्भास्तावतस्तानपास्यगर्भाधानंतारयास्यात्तदूर्द्धम् २७५ प्रदक्षिणे पुंसि सुतस्य जन्मजन्मस्त्रियायोषिति दक्षिणस्याम्।। जन्मद्रये दक्षिणगे द्वयस्य किं गर्भवत्या भवितेति पृष्टे।।२७६॥ ॥ टीका ॥ प्रीतिर्यस्यां सत्यामित्यर्थः ॥ २७२ ॥ तारेति तारापक्षी गर्भसंभूतिहेतुर्भवति । यदा पुष्पपत्रे फलं वा गृहंस्तद्धेतुःस्यादित्यर्थः । वामयायी गर्भस्रावं विधत्ते । यहा पुष्पपत्रे फलं वा मंचनगर्भस्रावं कुर्यादित्यर्थः ॥२७३ ॥ अध इति ॥ पक्षिणोऽधः प्रपात वमिर्वमनं मूत्रं प्रस्रावः विष्ठाविद् वमिमूत्राभ्यां सहिता विष्ठेति मध्यमपदलो पीतत्पुरुषःसमासः। इत्यादिकाश्चेष्टाः गर्भप्रणाशं विदधति । यदा वामेन पदा अंगं सम्माष्टिं तदा स गर्भावयवो हीनःस्यात् ॥ २७४ ॥गर्भ इत्यादि । गर्भप्रश्ने यावती दक्षिणेन उच्चावाचा श्यामाशब्दानुच्चरति नार्या गर्भाः तावंतः स्यु तानपास्येति तान् शब्दान् अपास्य त्यक्ता तदूर्द्ध तारया गर्भाधानं स्यात् ।। २७५ ॥ प्रदक्षिणेति गर्भवत्याः किं भविता इति पृष्टे पुंसि प्रदक्षिणे सुतस्य जन्म भवति यो ॥ भाषा ॥ तैसेही कुमारी के शकुनमें हम जानैं हैं ॥ २७२ ॥ तारेति ॥ जो पक्षी तारा होय तो गर्भकू प्रगट करे और पुष्पफल इनै ग्रहणकरै तो गर्भके ग्रहण करबेकी हेतु जाननी जो वामभागमें गमन करे तो गर्भस्राव करे अथवा पुष्पपत्रफल इन्है त्याग कर तोभी गर्भको खाव करे ॥ २७३ ॥ अध इति ॥ पक्षीको अधःपात होय या वमन कर मूत्रस्राव करै विटू कर इनकू आदिले चेष्टा करै तो गर्भको नाश कर. जो बाँयें पाँवकरके अंगकू मार्जन करै तो गर्भके अवयव करके हीन होय ॥ २७४ ॥ गर्भ इत्यादि । गर्भके प्रश्नमें शकुन देखे तो श्यामादक्षिणमांऊ आयकरके ऊंचे स्वरकरके जितनेशब्द उच्चारणकरै तितनेही गर्भ स्त्रीके होयँ और उनशब्दनकू छोडकरके बाई होय जेमनी आजाय तो गर्भाधान होय ॥ २७५ ॥ प्रदक्षणति ॥ गर्भवतीके कहा होयगो ऐसी प्रश्नकरै तब पुरुषविहंग दक्षिणभागमें होय For Private And Personal Use Only
SR No.020879
Book TitleVasantraj Shakunam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasantraj Bhatt, Bhanuchandravijay Gani
PublisherKhemraj Shrikrushnadas Shreshthi Mumbai
Publication Year1828
Total Pages596
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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