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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१७४) वसंतराजशाकुने-सप्तमो वर्गः। वामे बाह्यं दक्षिणे आंतरं स्वपुच्छोत्पाटे पोदकी हंति सैन्यम् । चंच्चा सर्व चर्वयंती स्वमंगं वक्ति श्यामा स्वामिनो गावभंगम् ॥ २३२ ॥ युद्धप्रश्ने नोद्धृता नापि तारा स्याध्यावृत्तौ वामगा पांडवी चेत् ॥ मूर्धा साधू श्रीजयश्रीपणं तत्प्राणद्यूतं स्यादवश्यं भटानाम् ॥ १३३ ॥ प्रयाति तारा यदि तोरणांते निवृत्तिकाले प्रतिलोमगा चेत् ॥ तद्धांशवतालशृगालगृध्ररक्षःक्षुधात्तिक्षपणं रणं स्यात् ॥२३४॥ ॥ टीका ॥ नदा समरः अतिघोरः स्यात् । कीदृग शिवाफेत्कृततालबंधनृत्यत्कबंध इति शिवाफेत्कृतमेव तालबंधः हस्तास्फोटः तेन नृत्यंतः कबंधा यत्र स तथा ॥ २३१ ॥ वामइति । वामे स्वपुच्छोत्पाटे पोदकी बाह्यं सैन्यं हति । दक्षिणे स्वपुच्छोत्पाटे आंतरस्थां हंति । चंच्या स्वमंगं चर्वयंती पोदकी युद्धे स्वामिनो गात्रभंगं वक्ति ॥२३२ ॥ युद्धेति ॥ चेद्यदि युद्धप्रश्ने सति उद्धृता न स्यात् तारा अपि न स्यात् व्यावृत्तौ वामगा पांडवी स्यात्तदा मूर्धा साई श्रीजयश्रीपणं स्यात् भटानां प्राण तमवश्यं तत्स्यात् ।। २३३ ॥ प्रयातीति ।। यदि तोरणांत तारा प्रयाति चनिवृत्तिकाले प्रतिलोमगा भवेत्तदा रणं स्यात् । कीदृग् ध्वक्षिति ध्वाक्षवैतालशगाल गुधरक्षांसि तेषां क्षुधार्तिः क्षुत्पीडा तस्याः क्षपणं दूरीकारकम् ॥ २३ ॥ ॥ भाषा॥ जामें शब्द करते होंय हजारन कबंध जामें पड़े होय ऐसो अत्यंत घोर संग्राम करावे ।। ।। २३१॥ वामइति ॥ वामभागमें पूंछ' उत्पाटनकर तो पोदकी बाहरकी सेनाको नाश करे. और जेननेमांऊकी पूंछको उखाडे तो भीतरकी सेनाको नाश करे. और जो चोंचकर अपने अंग चर्वण करैतो पोदकी युद्ध में स्वामीके देहको भंगकरै ।। २३२ ।। युद्धति ॥ यद्धके शकनमें पोदकी उद्धता न होय और ताराभी न होय बगदतीसमय वामभागमें होय ती मस्तक करके सहित राज्यश्रीकू आदिले सब निवेदन करै और जो योद्धानके प्राणको नाश अवश्य होय ॥ २३३ ॥ प्रयातीति । जो तोरणके अंतमें तारा होय अगदतीसमय प्रतिलोमगा होय तो काक, वैताल, शृगाल, गीध, राक्षस इनके क्षुधाकी पीडाकू दूरकरबे For Private And Personal Use Only
SR No.020879
Book TitleVasantraj Shakunam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasantraj Bhatt, Bhanuchandravijay Gani
PublisherKhemraj Shrikrushnadas Shreshthi Mumbai
Publication Year1828
Total Pages596
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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