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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पोदकीरते स्वरप्रकरणम् । (१२३ } अनंतरं पार्थिवनादतश्चेदह्रिस्वरस्तत्फलमक्षतं स्यात् ॥ वायव्यशब्दो यदि नाभसो वा भूत्वा फलं नश्यति तत्समस्तम् ॥ ६३॥ शांती निनादौ पृथिवीजलाख्यौ दीप्तौ समीरांबरनामधेयौ ॥ तेजःप्रधानो द्वितयावलंबी भवेत्समं येन फलेऽपि ताहक्॥६४॥शुभेषु कार्येषु शुभाय शांतोदीप्तो भयादोभयनाशनाय॥ विपर्ययाद्दावपिन प्रशस्तावस्तित्वनास्तित्वफलौ यतम्तौ ॥ ६ ॥ ॥ टीका॥ शीनं ध्रुवं निश्चयेन उद्भवंति ॥ ६२ ॥ अनंतरमिति ॥ पार्थिवनादतः अनंतरं वद्धिस्वरश्चेत्तस्मात् तदा फलं अक्षतं स्यात् । यदि पार्थिवादनंतरं वायव्यशब्दो मारुतशब्दः नाभसो वा आंबरो निनादो भवति तदा फलं भूत्वा तत्समस्तं नश्यति ॥६३॥ शांताविति ॥ पृथिवीजलाख्यौ शांती निनादौ भवतः। समीरांबरनामधेयौ दीप्तौ भवतः। द्वितयावलंबी द्वितयं युगलं अवलंबते इत्येवंशीलत्तेजःप्रधानः शब्दः येन शब्देन समं सह भवेत्फलेनापि तादृक्स्यात् । शांतेन समं शांतं फलं ददाति दीप्तेन ममं दीप्तं फलं ददातीत्यर्थः ॥ ६४ ॥ शुभेष्विति ॥ शुभेषु कार्येषु शांतः शुभाय भवति भयादौ दीप्तः भयनाशनाय भवति । विपर्ययादिति शुभकायें ॥ भाषा ॥ अग्नि इनके शब्द हाय तो मनोरथनतेभी अधिकफल शीघ्र होय ॥ १२ ॥ अनंतरमिति॥ पार्थिव नादके अनंतर जो बहिस्वर होय तो फल अक्षत नाम क्षय न होय और जो पाविनादके अनंतर वायव्य शब्द अथवा नाभस शब्द होय तो फल होय करके फिरत्रो स. मन नाशकं प्राप्त होय ॥ १३ ॥ शांताविति ॥ पृथिवी, जल ये दोनों शांत शब्द होय और वायु, अंबर ये दोनों दीप्तशब्द होंय और शांतदीप्त· अवलंबन करवेवारो तेजशब्द है सो ये तेजःप्रधान शब्द शांतकरके सहित होय तो शांतफल देवे और दीप्तकरके सहित होय तो दीप्तफल देवे ।। ६४ ॥ शुभेष्विति ।। शुभकार्यनमें शांत होय तो शुभ करें और भयादिकनमें दति होय तो भयके नाशके अर्थ होय और शुभ कार्यमें दप्ति होय और For Private And Personal Use Only
SR No.020879
Book TitleVasantraj Shakunam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasantraj Bhatt, Bhanuchandravijay Gani
PublisherKhemraj Shrikrushnadas Shreshthi Mumbai
Publication Year1828
Total Pages596
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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