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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नरेंगिते उपचतिप्रकरणम् (८१) प्रदोषकाले यदि वा प्रभाते लोके क्वचित्किंचन भाषमाणे॥ उपश्रुतिः कार्यसमुद्यतेन सार्वत्रिकी वा परिभावनीया। ॥ १३॥ यद्वालकेनोक्तमनोदितेन तत्स्यादसत्यं न युगांतरेऽपि ॥ उपश्रुतेर्नान्यदिहास्ति किंचित्सत्यं सुबोधं शकुनं जनानाम् ॥ १४ ॥ वदंति वामं रुदितं प्रशस्तमदृश्यदेहो यदि रोदिता स्यात् ।। निदंत्यवामं पथि सर्वकामाञ्छतं विधत्ते रुदितं रजन्याम् ॥ १५॥ ॥टीका ॥ प्रदोषकाल इति । अथ कार्यसमुद्यतेन पुंसा सार्वत्रिकी उपश्रुतिः परिभावनीया विचारणीया जनश्रुतिरुपश्रुतिरिति हैमः । कस्मिन् प्रदोषकाले रात्रिमारंभसमये प्रदोषो रजनीमुखमित्यमरः । यदि वा प्रभाते कचित् किंचन भाषमाणे लोके सति उपश्रुतिः परिभावनीयेत्यर्थः ॥ १३ ॥ यदिति ॥ अनोदितेन अमेरितेन यदालकेन शिशुना प्रोक्तं तद्युगान्तरेऽपि असत्यं मृषा न स्यात् इहास्मिन् लोके जनानां सुबोधं शकुनमुपश्रुतेरन्यत्सत्यं किंचिनास्ति ॥ १४ ॥ केचित्त्वदिने व्यवसायिना गृहे सोमे भट्टानां गृहे भूसुते राजपुत्राणां गृहे बुधे वणिजां गृहे गुरौ विप्रसदने शुक्र म्लेच्छगृहे शनौ शूद्राणां सदने गत्वोपश्रुतिर्विलोक्येत्याहुः । वदंतीति।वामं रुदितं प्रशस्तं वदंति यदि रोदिता रोदनकर्ता अदृष्टदेहः स्याहंतुः दृग्गोचरो न भवे. दित्यर्थः । अवाम दक्षिणं रुदितं निंदति पथि रजन्यां श्रुतं रुदितं सर्वकामा ॥भाषा ॥ चार करना योग्य है ॥ १२ ॥ प्रदोषकाल इति ।। प्रदोषकालमें वा प्रभातकालमें वा कोई मनुष्य बोले नहीं सब सोयजायँ वा समयमें कार्यवान् पुरुष करके सदा सर्वदा उपश्रुति विचार करने योग्य है ॥ १३ ॥ यदिति ॥ विना काऊ करके प्रेरो बालक ता करके कह्यो वचन युगांतरमें भी असत्य नहीं होय या लोकमें जनन. सुबोधपूर्वक शकुन उपश्रुतितें अन्यत् कहिये और सत्यकभी नहीं है रविदिनमें चांडालगृहे चंद्रवारकू नाऊके घर, मंग लवारकू धोबीके घर, बुधवारकू वैश्यके घर, गुरुवारकू ब्राह्मणके घर, शुक्रवारकू म्लेच्छके घर, शनिवारकू शदनके घर, वा दासीके घर इनमें जायके उपश्रुती शकुन देखनो यामें विशेष जानना हो तब बृहज्योतिषार्णवके प्रश्नस्कंधमें देखलेनो ॥ १४ ॥ वदंतीति ॥ वामभागमें रुदन सुनै, और रुदन कर्ताको देह तो दीखै नहीं शब्द सुनवेमें आवे तो शुभ कहनो, और नो जेमने भागमें रुदन सुनै तो कार्यकू नाश करै, और मार्ग में रुदन रात्रि, श्रवण For Private And Personal Use Only
SR No.020879
Book TitleVasantraj Shakunam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasantraj Bhatt, Bhanuchandravijay Gani
PublisherKhemraj Shrikrushnadas Shreshthi Mumbai
Publication Year1828
Total Pages596
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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