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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir शुभाशुभप्रकरणम् ५. (७१) स्वपादजानुस्खलनं देशानां संगः कचिद्घातपलायनं च ॥ द्वाराभिघातध्वजवस्त्रपाताः प्रस्थानविघ्नं कथयति यातुः ॥ ॥१२॥ मार्जारयुद्धारवदर्शनानि कलिः कुटुंबस्य परस्परेण ॥ चित्तस्य कालुष्यकरं च सर्व गंतुः प्रयाणप्रतिषेधनाय ॥१३॥ ॥ टीका ॥ कथासैकदेशः तकं प्रसिद्धम् अर्गला काष्ठविशेषःशृंखलः लोहमयाप्रतीतः वृष्टिःवर्षा वातः वायुविशेष इदं त्रिंशत् क्वचित्कार्येषु न शस्तं सर्वत्र अशोभनमित्यर्थः। कचिदृष्टिघाता इत्यपि पाठः॥११॥ स्वपादेति ॥ स्वपादनानुनोः स्खलनं तथा दशानां वस्त्रप्रांतान संगः क्वचिदिलग्नं घातेन युक्तं पलायनद्वाराभिघातः गच्छतः द्वारस्थकाष्ठादिना घातः ध्वजवस्त्रपाताः ध्वजवस्त्रयोः पातः पतनं नूनं निश्चितं एते पूवोक्ताः प्रस्थानविघ्नं प्रस्थाने चलने विघ्नमंतरायं कथयंति प्रतिपादयंति स्वपादयानस्खलनमित्यपि पाठः ॥१२॥ मानारोति ॥ मानारयुद्धारवदर्शनानीति मार्जारयोयुद्धमारवः शब्दः दर्शनं विलोकनं तानि तथा कुटुंबस्य परस्परेण कलिः केशः यदन्यचित्तस्य मनसः कालुष्यकरं तत्सर्वं गंतुः प्रयाणप्रतिषेधनाय भवतीति तात्प ॥ भाषा॥ तृण-सूखी घास २५ छाछ २६ काष्ठ २७ लोहेकी सांकल २८ वर्षा २९ वायु ३० पे तीस वस्तु सब कार्यनमें शुभ नहीं हैं सदा अशुभ हैं ॥ ११ ॥ स्वपादति ॥ अपनो पाँव जानु इनको स्खलन होना, और वनके पल्लेनको संग कहा लग जाय, काऊमें अटक जाय, और कोई भाग्यौ जातो होय या जलदीही जातो होय वाके हाथको प्रहार लगजाय वा पाँवकी ठोकर लगजाय अथवा वस्त्र काही फटकार लग जाय और ध्वजा पताकाको पतन होनो और वस्त्रको पतन होनो और चलती समयमें द्वारेमें कोई काष्टादिक करके घातहोनो ये सब निश्चयही चलती समयमें होंय तो विघ्न कहेहैं ॥ १२ ॥ माजोरेति ॥ मार्जार जे बिलाव तिनको युद्ध और इनको दर्शन और कुटुंबको परस्पर कलह होनो और बीजो मन मलिनताके करवेवाले है ये सब गमन करनेवाले पुरुषकं प्रयाणके निषेधके लिये जाननो ॥१३॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020879
Book TitleVasantraj Shakunam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasantraj Bhatt, Bhanuchandravijay Gani
PublisherKhemraj Shrikrushnadas Shreshthi Mumbai
Publication Year1828
Total Pages596
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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