SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 61
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ She Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Sh Kallassagarsur Gyanandit वर्धमान चरित्रम्, १५॥ www.kabaniem.org धन्य एव धनिको धनव्ययं । तीर्थ अत्र विदधाति धार्मिकः ॥ कश्चिदंगजविको जवार्णवाऽपारपारगमनेन्जयांगजाक ॥ ३० ॥ संघ एष विधिना चतुर्विधः । पूजितोऽत्र परिपूजनीयतां ॥ पू. जितो जिनवरैरपीहितां । स्वचित्तनविनां प्रयवति ॥ ३७॥ प्रथमतीर्थकरांगसमुनव-जरतभूपतिना प्रकटीकृतं ॥ गणधरेंडसुनामपवित्रित-मसुरनिर्जरनाथनमस्कृतं ॥ ४०॥ प्रवरतीर्थमिदं प्रमदप्रदं । विकटसंकटसंगविदारकं ॥ निकटसिकिवधूसकटाक्षितो । नविक एव जनः परिपश्यति ॥४१॥ युग्मं ॥ संसारसमुद्र ने पेले पार पहोंचवानी इच्छावाळो कोइक धर्मात्मा भविक अने धन्य एवोज धनवान माणस आ तीर्थमा ( पोताना ) धननो व्यय करे छे. ॥ ३८ ॥ जिनेश्वरोए पण पूजेला एवा आ चतुर्विध संघने अहीं विधिपूर्वक पूजवाथी ते स्वच्छ हृदयवाळा भव्योने इच्छित पूजनीयपणुं अर्थात् मोक्ष आपे छे. ॥ ३९ ॥ श्रीआदिजिनेश्वरना पुत्र भरतराजाए प्रकट करेलु, अने गणधरेश जे पुंडरीकजी तेना नामथी पवित्र धयेलु (पुंडरिकगिरिनामवाळु) तथा असुरेंद्रो अने देवेंद्रोथी नमस्कार 13॥५॥ करायेलु, हर्ष आफ्नारु, भयंकर संकटोना संगने कापी नाखनारुं आ उत्तम तीर्थ छे, अने एवा आ तीर्थने नजीक रहेली मुक्तिस्वीथी सारी रीते कटाक्षित थयेलो भव्य प्राणीज जोइ शके छे. ॥४०॥४१॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020877
Book TitleVardhaman Padmasinh Shreshthi Charitam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarsagarsuri
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1924
Total Pages159
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy