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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra वर्धमान ॥ ४७ ॥ www.kobatirth.org. इति श्रीमद्विधिपगबाधी श्वरभट्टारक शिरोमणि श्रीमत्कल्याणसागरसूरीश्वर पहालंकार श्रीमदमरसागरसूरिविरचिते श्रीमलाल गोत्रीयश्राद्धवर्य श्री वर्धमान पद्मसिंह ष्टिचरित्रे तदीयव्यापारलमी प्राप्तिवर्णनो नाम तृतीयः सर्गः समाप्तः ॥ श्रीरस्तु ॥ ॥ अथ चतुर्थः सर्गः प्रारभ्यते ॥ इतश्च चांपसिंहाख्यो । बांधवोऽथ तयोस्तदा ॥ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रिषाणाभिधग्रामे ॥ वसतिस्म कुटुंब युक् ॥ १॥ एवी रीते श्रीमान् विधिपक्षगच्छाधीश्वर भट्टारकशिरोमणि श्रीमान् कल्याणसागर सूरीश्वरना पाटने शोभावना श्रीमान् अमरसागरवरिजीए रचेला श्रीमान् लालणगोत्रना श्रावकोत्तम श्रीवर्धमान अने पद्मसिंह शेठना चरित्रमां तेओनो व्यापार तथा लक्ष्मीप्राप्तिना वर्णनरूप श्रीजो सर्ग समाप्त थयो । श्रीरस्तु ॥ ॥ हवे चोथा सर्गनो प्रारंभ थाय छे. ॥ हवे ते वखते ते वर्धमानशाह तथा पद्मसिंहशाहनो चापसिंह नामनो भाइ आरीखाणामां कुटुंबसहित रहेतो हतो. ॥ १ ॥ For Private And Personal Use Only चरित्रम्, ॥ ४१ ॥
SR No.020877
Book TitleVardhaman Padmasinh Shreshthi Charitam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarsagarsuri
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1924
Total Pages159
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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