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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirm.org Acharya Shri Kailasagarsur Gyarmandie पर्षमान- प्रासादः शांतिनाथस्य । वर्धमानकृतो महान् ॥ अपूर्णश्च तथा स्तोकं । स्थितो नाविनियोगतः।४५॥ | चरित्रम, चतुर्मुखोरुप्रासाद-शिखरे के जमाविद ॥ पाश्वयोर्मुख्यशृंगस्य । ह्यपूर्णे एंव संस्थिते ॥ ४६॥ ॥११०॥ गवाक्षालिस्तथैवात्र । मंडपा अपि चैतयोः ॥ जाविप्रावख्यतो नून-मपूर्णा एव संस्थिताः ॥ ४ ॥ तथापि शांतिनाथस्य । प्रासादोऽयं विराजते ॥ विमानमिव देवानां । कीर्तिस्तंभ इवैतयोः ॥४॥ गुप्तभूमिगृहादिनां । व्यवस्था सुदुर्खना ॥ विद्यते बिंबकादिनां । कदाचिअक्षणकृते ॥४॥ ___हवे वर्धमानशाहे बंधावेलु श्री शांतिनाथजीनुं ते महोटुं मंदिर भाविना नियोगथी थोडं अपूर्ण रही गयुं हतुं. ॥ ४५ ॥ ते जिनमंदिरनी भमतीमा ( फरतीमा ) मुख्य शिखरनी बन्ने बाजुए आवेली बने चोमखोपरना बन्ने शिखरो अपूर्णज रह्या. ॥ ४६ ॥ तेवीजरीते ते चोमखना झरुखाओ अने मंडपो पण भाविनी प्रबलताने लेइ खरेखर अपूर्ण रही गया छे. ॥४७॥ तो पण आ शांतिनाथनो प्रासाद देवताओन जाणे विमान होय नहिं ! अथवा ते वर्धमानशाह तथा पद्मसिंहशाहनो कीर्तिनो जाणे स्तंभ होय नहि ? एम शोमे छे. ॥ ४८ ।। कोइ वखते मूर्ति आदिकनी रक्षा माटे आ मंदिरमा गुप्त भोयरा आदिकनी 18| दुर्लभ व्यवस्था करेली के. ॥४॥ दा॥११०॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020877
Book TitleVardhaman Padmasinh Shreshthi Charitam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarsagarsuri
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1924
Total Pages159
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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