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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailasagarsur Gyanmandir कालान ॥एए॥6 श्रीसंजवाख्योरुजिनेश्वरस्य । प्रतिष्ठितानीह सुबिंबकानि ॥ सुश्रेष्टिना तेन बहुव्ययेन । सूरीश्वरस्योरुकरेण शीघं ॥ ६३ ॥ राज्यसिंहमृतितोऽतिखेदित-श्चापसिंह श्व कीर्तिखालसः ॥ प्रारजतिननिकेतमेककं । कर्तुमत्र शुजभावनावितः ॥ ६४॥ पूर्णतामथ गतं परं न तत् । शंगमात्रमपि तु व्यराजत ॥ तत्र मूर्तिरपि नो जिनेशितु-विघ्नतः खलु निवेशिता ध्रुवं ॥६५॥ इति श्रीमधिधिपगबाधीश्वरजहारकशिरोमणिश्रीमत्कल्याणसागरसूरीश्वरपट्टालंकारश्रीमदमरसागरसूरि विर पछी ते उत्तम एवा नेणसीशाह शेठे ते जिनप्रासादमा घणु द्रव्य खरची आचार्य श्रीकल्याणसागरसूरिजीना उत्तम हाथे श्रीसंभवनाथजी नामना मनोहर तीर्थकर प्रभुनी श्रेष्ट प्रतिमाओनी तुरत प्रतिष्ठा करावी. ।। ६३ ॥ रायसीशाहना मरणथी अतिशय खेद पामेला चापशीशाहे कीर्तिनी इच्छायी अहीं ( नवानगरमा ) शुभ भावथी भावित थइने एक जिनमंदिर करवानो प्रारंभ कर्यो. ॥ ६४ ॥ परंतु ते जिनमंदिर संपूर्ण थयु नही, फक्त ( तेनुं) शिखरमात्रज शोभवा लाग्युं. तेमज खरेखर विनने लीधे ते जिनमंदिरमा जिनेश्वरप्रमुनी प्रतिमानी पण स्थापना थइ नहीं ।। ६५ । एवी रीते श्रीमान् विधिपक्षगच्छाधीश्वर भट्टारकशिरोमणि श्रीमान् कल्याणसागर सूरीश्वरना पाटने शोभावनारा श्रीमान् अमरसागरसूरिजीए रचेला श्रीमान् एए॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020877
Book TitleVardhaman Padmasinh Shreshthi Charitam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarsagarsuri
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1924
Total Pages159
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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