________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kcbatirth.org Acharya Shei Kailashsagarsuri Gyanmandit मन्थदग्ने॥ त्वामैग्नेपुष्करादयनिरमन्थत // मुर्नोविश्वस्य / बाघतः // 32 // तमुत्त्वा। दुयङ्कषि पुत्रऽईधेऽअर्थर्वण // वृत्रह णम्पुरन्दुरम्॥३३॥ तमुत्त्वा / पात्थ्योवृषासमीधेदस्युहन्तमम्॥ धनञ्जय रणैरणे॥३४॥ सीदहोत // सीदहोतस्वऽउलोकेचि / / कित्वान्त्सादायज्ञम्सुकृतस्युयोनौ // देवावी?वान्हविायजा / स्यग्ग्नेबृहद्यज॑मानेबयोधाः // 35 // निहोतो / होतृपदनेविदान / स्त्वेषोदीदिवाँ२ ऽअसदत्सुदक्षः॥ अदबुतप्प्रमतिर्वसिष्ठांसह For Private And Personal