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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रसराज महोदधि। (१७७ ) त्याग करै रोके नहीं जो रोके तो मलकी गरमी से वात पित्त मिल कर तमाम शरीर में नाना प्रकार के रोग पैदा करतेहैं मनुष्य मलको बराबर त्याग करे और पेशाब इसी तरहसे करे रोक नहीं पेशाव रोकनेसे सुजाक परमा पैदा होता है सोइसे बचाये रहना. अथ पानीका बयान. पानी भोजनमें कमती पीवे भोजन के दो घरी पीछे पीवे गरम शरद की प्रकृति समझ कर पीवे दरियाव का पानी सबसे अच्छा पीछे कूए का पानी अच्छा है और तालपोखरी का पानी रोग पैदा करता है मैथुनमें पानी विकार है कुस्ती मेहनति में विकार है ठंढे पानी से गरम पानी का स्नान करना हित है अथ शीतपित्तका बयानशीतपित्त महारोगहै क्षणमें निकलता है क्षणमें समाता है दवासे दूर होता है लेकिन उसकी जड़ नहीं जाती मरने तक रहतीहै कभी शीतमें निकलता है कभी गरमीमें निकलता है शरीरका खून सब बिगाड़ देता है इसके दूर करनेकी दवा लिखते हैं परमेश्वरकी कृपासे रोगी निरोग होगा निश्चयसे यही दवा करना भूलना नहीं. अथ शीतपित्तकी मालिश. सजीखार सेंधानमक करुवातुल मिलायके शरीर For Private and Personal Use Only
SR No.020866
Book TitleVaidhyak Rasraj Mahodadhi Bhasha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagwandas Bhagat
PublisherKhemraj Shrikrushnadas Shreshthi Mumbai
Publication Year1820
Total Pages206
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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