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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हिन्दी के आदिकाल को अधिकांश रूप में जैन कवियों ने समृद्ध किया है। इनमें गुजराती और राजस्थानी कवियों का विशेष योगदान रहा है । यहाँ हम अपभ्रंश कवियों को छोड़कर गुजराती और राजस्थानी हिन्दी जैन साहित्यकारों का विशेष उल्लेख कर रहे हैं। उनका समय साधारणतः 13-14वीं शती के बीच होता है। इस युग में काव्य और रासा साहित्य ही अधिक मिलता है । इसलिए यहाँ हम प्रवृत्ति-गत उल्लेख न कर आचार्य-क्रम से उसका विवरण प्रस्तुत कर रहे हैं। 11-12वीं शती का साहित्य अपभ्रंश- मूलक है। इसलिए उसे यहाँ विस्तारभय से छोड़ा जा रहा है। 13वीं शती के हिन्दी जैन कवि अभयदेव सूरि-नवांगी वृत्तिकार अभयदेव (सं. 1139) का 'जयति - हुमणस्तोत्र' तथा द्वितीय अभयदेव का 'जयन्तविजय काव्य' (सं. 1285) प्रसिद्ध है । आसिग (सं. 1257 ) - आपकी तीन रचनाएँ मिलती हैं- जीवदयारास, (53 गा.) चन्दनवाला रास (35 पद्य) और शान्तिनाथ रास। इनकी भाषा का उदाहरण है- "केधिर सालि दालि भुजंता, धिम धलहलु मज्झे विलहंता" । श्रावक जगडू (13-14वीं शती) - खरतरगच्छीय आचार्य जिनेश्वर सूरि के शिष्य थे। आपकी रचना 'सम्यक्त्व माइ चउपइ (64 पद्य), उपलब्ध है। इसकी भाषा का उदाहरण देखें - " समकित विणु जो क्रिया करेइ, तालइलोहि नीरु घालेइ " । जिनेश्वर सूरि (सं. 1207 ) - आप जिनपति के पट्टधर थे। आपकी चार रचनाएँ उपलब्ध हैं- 1. महावीर जन्माभिषेक (14 पद्य), 2. श्रीवासुपूज्य बोलिका, 3. चर्चरी, और 4. शान्तिनाथ बोली । अन्य प्रमुख आदिकालीन हिन्दी जैन कवि इस प्रकार हैं- जयमंगलसूरि (13वीं शती) - महावीर जन्माभिषेक | जयदेवगण ( 13वीं शती) - ' भावना सन्धि' काव्य । देलहण - गयसुकुमालरास (34 पद्य) - सं. 1300 । धर्मसूरि-जम्बूस्वामीचरित (41 पद्य) - सं. 1266, स्थूलभद्ररास (47 पद्य) । सुभद्रासती चतुष्पदिकार (42 पद्य), मयणरेहारास (36 पद्य) । नेमिचन्द्र भंडारी - षष्टिशतक ( 160 गाथा, प्राकृत) गुरुगुणवर्णन (35 पद्य) । पृथ्वीचन्द्र - मातृका प्रथमाक्षर दोहा (58 दोहे) (सं. 1265), ( रसविलास ) । पाल्हण - आबूरास (नेमिनाथ रासो) - ) - 50 पद्य (सं. 1289 ) । पुण्यसागर - श्री जिनचन्द्रसूरि अष्टकम् (सं. 1205), भत्तउ - - श्रीमज्जिनपतिसूरीणां गीतम् (20 द्विपदिकाएँ) - 13वीं शती । यश: कीर्ति ( प्रथम ) - जगत्सुन्दरी प्रयोगमाला - (13वीं शती) । रत्नप्रभ सूरि'अन्तरंग सन्धि' काव्य (सं. 1227) - 37 कुलक । शाहरयण - जिनपति सूरि धवलगीत (सं. 1277 ) । श्रावक लखण - जिनचन्द्रसूरि काव्याष्टकम् (13वीं शती) । पंडित लाखूजिणदत्तचरिउ (सं. 1275 ) । श्रावकलखमसी - जिनचन्द्रसूरि वर्णनारास (सं. 1371)। 842 :: जैनधर्म परिचय For Private And Personal Use Only
SR No.020865
Book TitleJain Dharm Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhprasad Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2012
Total Pages876
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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