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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir में अमितगति-(ई. 11वीं शती) कृत 'धर्मपरीक्षा', प्रभाचन्द्र (13वीं शती) कृत 'कथाकोष', राजशेखर (14वीं शती) कृत 'अन्तर्कथासंग्रह', नेमिदत्त (16वीं शती) कृत 'आराधना कथाकोष', शुभशील गणी (15वीं शती) कृत 'पंचशती प्रबोधसम्बन्ध', हेमविजय (1600ई.) कृत 'कथारत्नाकर' उल्लेखनीय हैं। इसी सन्दर्भ में कथासंग्रह रूप में 'सम्यक्त्वकौमुदी' नाम से अनेक कृतियाँ प्राप्त हैं, जिनके रचयिता जिनहर्षगणी (15वीं शती), सोमदेव सूरि (16वीं शती) आदि प्रसिद्ध साहित्यकार रहे हैं। __ कुछ ऐसी भी गद्यात्मक या पद्यात्मक संस्कृत कृतियाँ हैं, जिनमें ऐतिहासिक घटना या आचार्यों आदि के ऐतिहासिक वृत्त निबद्ध हैं, अत: इनकी उपयोगिता स्पष्ट है। ऐसी कृतियों में धनेश्वरसूरि (7-8वीं शती) कृत शत्रुजयमाहात्म्य, तथा प्रभाचन्द्र (13वीं शती), मेरुतुंग (14वीं शती) एवं राजशेखर (14वीं शती)-इन तीन आचार्यों द्वारा पृथक्-पृथक् रचित प्रभावकचरित्र आदि प्रमुख हैं। संस्कृत नाट्य-साहित्य संस्कृत नाट्य-परम्परा में भी जैन परम्परा का पर्याप्त योगदान रहा है। रामचन्द्र सूरि (13वीं शती) कृत 'निर्भयभीमव्यायोग', 'नलविलास', 'कौमुदीमित्रानन्द'; हस्तिमल्ल (13वीं शती) कृत 'विक्रान्त कौरव', 'सुभद्रा', 'मैथिलीकल्याण' व 'अंजनापवनंजय', जिनप्रभसूरि-शिष्य रामभद्र (13वीं शती) कृत 'प्रबुद्धरौहिणेय'; यश:पाल (13वीं शती) कृत 'मोहराजपराजय', वीरसूरि शिष्य जयसिंह सूरि (13वीं शती) कृत 'हम्मीरमदमर्दन', पद्मचन्द्र शिष्य यशश्चन्द्र (14-15वीं शती लगभग) कृत 'प्रबोधचन्द्रोदय', बालचन्द्र (8-9 शती प्रायः) कृत 'करुणावज्रायुध' आदि नाटक विशेष उल्लेखनीय हैं। संस्कृत कोश-साहित्य ___ संस्कृत कोश साहित्य को समृद्ध करने में भी जैन परम्परा अग्रसर रही है। प्राचीनतम संस्कृत कोश हैं- 'नाममाला' और 'अनेकार्थनाममाला', जिनके रचयिता हैं-धनंजय (ई. 8-9शती) । इसके बाद आचार्य हेमचन्द्र द्वारा अभिधानचिन्तामणि' व 'अनेकार्थसंग्रह', श्रीधरसेन (13-14 शती ई.) द्वारा 'विश्वलोचन कोश' (मुक्तावलि कोश), तथा जिनदत्तसूरि के शिष्य अमरचन्द्र द्वारा 'एकाक्षरनाममाला' आदि कोश रचे गये। संस्कृत-अलंकार-शास्त्र व छन्दशास्त्र संस्कृत अलंकार व छन्दशास्त्र सम्बन्धी कृतियों में वाग्भट (12वीं शती) कृत 'वाग्भटालंकार' हेमचन्द्र (12वीं शती) कृत 'काव्यानुशासन', अरिसिंह (13वीं शती) संस्कृत साहित्य-परम्परा :: 805 For Private And Personal Use Only
SR No.020865
Book TitleJain Dharm Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhprasad Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2012
Total Pages876
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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