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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir का कथन दशलक्षण में उत्साह से भाग ले रहे श्रावकों के लिए था और आज कल के भौतिक जिन्दगी में व्यस्त लोगों की अपेक्षा से मेरी दृष्टि में सही था। आशा है पाठक इस बात से सहमत होंगे। जय जिनेन्द्र। सन्दर्भ 1. इस खंड में दी गई जानकारी निम्न पुस्तक पर आधारित है-डॉ. भुवनेंद्र कुमार (1996), कनाडियन स्टडीस इन जैनिज्म, जैन ह्युमेनीटीज प्रेस, मिस्सिस्सौगा, ओंटारियो, कनाडा 2. क्वीन, एडवर्ड ल.; प्रोथेरो, स्टीफेन र.; शेटुक गार्डिनर ह. (2009) एन्साईक्लोपेडिया ऑफ अमेरिकेन रिलिजिअस हिस्टरी, इन्फोबेस पब्लिशिंग, पृष्ठ संख्या 531, ISBN 978-0-8160 6660-5 3. यह मठ भारत में स्थित दिगम्बर जैन मठों की तरह नहीं है, यहाँ पर श्वेताम्बर संघ विराजमान 4. ली, जोनाथन ह. क्ष. (21 दिसम्बर 2010), एन्साईक्लोपेडिया ऑफ एशियन अमेरिकन फोल्कलोर एंड फोल्कलाइफ, ए.बी.सी.-सी.एल.आई.ओ., पृष्ठ संख्या 487-488, ISBN 978-0-313-35066-5 5. वाईली, क्रिस्टी ल. (2004), हिस्टोरिकल डिक्शनरी ऑफ जैनिज्म, स्केरेको प्रेस, पृष्ठ संख्या 19, ISBN 978-0-8108-5051-4 6. ली, जोनाथन ह. क्ष. (21 दिसम्बर 2010), एन्साईक्लोपेडिया ऑफ एशियन अमेरिकन फोल्कलोर एंड फोल्कलाइफ, ए.बी.सी.-सी.एल.आई.ओ., पृष्ठ संख्या 487-488, ISBN 978-0-313-35066-5 अमेरिका में जैनधर्म :: 763 For Private And Personal Use Only
SR No.020865
Book TitleJain Dharm Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhprasad Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2012
Total Pages876
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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