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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir महत्त्वपूर्ण तथ्य जिस प्रकार मनुष्य नासिका के माध्यम से श्वसन क्रिया करता है, उसी तरह भवन भी मुख्य द्वार के द्वारा श्वास लेता है। अतः मुख्य द्वार उचित स्थान पर, भेद रहित, सुसज्जित होना चाहिए। भूखंड के नौ बराबर हिस्से में से चौथे स्थान पर मुख्य द्वार का निर्माण करना चाहिए। मुख्य द्वार पर दहलीज अवश्य होना चाहिए। दहलीज (चौखट) के नीचे चाँदी का तार, स्वास्तिक एवं चाँदी की मुद्रा अवश्य डालें। भूखंड के ब्रह्म-स्थल पर कोई गड्डा, कुआँ या बेसमेंट न बनाएँ। भूखंड के ईशान कोण पर कुआँ, बोरिंग अथवा रिक्त स्थान छोड़ें, जिससे वहाँ सूर्य की लाभकारी किरणें संचित रहेंगी। भवन या भवन के समीप दूध वाले, कांटे वाले वोनसाई वृक्ष न लगाएँ, क्योंकि ये सभी विकास की गति में अवरोधक-द्योतक हैं। । घर में चैत्य वृक्ष पीपल, वट, कदम्ब, केला, अनार और नीबू के वृक्ष कदापि न लगाएँ। घर के प्रवेश-द्वार पर रंगोली, स्वस्तिक, मांगलिक प्रतीक (अष्टमंगल) अवश्य लगाएँ। घर में ऊर्जा बढ़ाने हेतु नित्य जिनेन्द्र देव की आराधना करें एवं माह में एक बार गाय के घी के 48 दीपक से भक्तामर का पाठ अवश्य करें, इससे घर की सारी नकारात्मक ऊर्जा पलायन कर जाएगी। घर के ईशान कोण को हमेशा संरक्षित, संवर्धित करके रखें, कभी कोई अशुद्ध (शौचालय) स्थल का निर्माण न करें। भूमि की अशुद्धियों, विघ्न व व्यन्तर बाधाओं को दूर करने के लिए शमी की लकड़ी अभिमन्त्रित करके जमीन में गाड़ दें, सभी अमंगलों को नष्ट कर सिद्धि देती है। वास्तु, ईश्वर द्वारा प्रदत्त वरदानों को अपने जीवन में आत्मसात करने की प्रेरणा देकर सुखद एहसास उत्पन्न कराता है। वास्तु के सिद्धान्त प्रत्येक देश की भौगोलिक स्थिति के अनुसार भिन्न-भिन्न होते हैं। वास्तु ऐसे भवन का सृजन करता है, जो प्राकृतिक ऊर्जाओं से ओतप्रोत होते हैं और इस प्रकार की ऊर्जाएँ भवन में स्व-चालित प्रक्रियाओं का सृजन करती हैं। गृह-संयोजन से लेकर जीवन- संयोजन तक प्रकृति की विभिन्न शक्तियाँ भिन्न-भिन्न भागों में भिन्न-भिन्न वातावरण का सृजन करती हैं, परन्तु यह आवश्यक नहीं कि प्रत्येक व्यक्ति का आभामंडल सर्वत्र एक-जैसा महसूस करे। प्रत्येक व्यक्ति के मस्तिष्क की कार्य-शैली, भावनाएँ, व्यवहार यहाँ तक कि अकारिकी (Physiology) पृथक् होती है। अतः यह मानना कि वास्तु प्रत्येक वास्तु :: 735 For Private And Personal Use Only
SR No.020865
Book TitleJain Dharm Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhprasad Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2012
Total Pages876
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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