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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मिली। स्थानांगसूत्र, सूत्रकृतांग, नायाधम्मकहाओ और पउमचरिय जैसे प्रारम्भिक एवं हरिवंशपुराण, वसुदेवहिण्डी, आदिपुराण और त्रिषष्टिशलाकापुरुष जैसे परवर्ती ग्रन्थों (छठी से 12वीं शती ई.) में विद्याओं के अनेक उल्लेख हैं।28 जैन ग्रन्थों में वर्णित अनेक विद्याओं में से 16 प्रमुख विद्याओं को लेकर लगभग नौवीं शती ई. में 16 महाविद्याओं की सूची नियत हुई और नौवीं से 12वीं शती ई. के मध्य इन्हीं 16 विद्यादेवियों के स्वतन्त्र लक्षण निर्धारित हुए। शिल्प में भी तदनुरूप इनकी मूर्तियाँ बनीं। विद्याओं की प्राचीनतम मूर्तियाँ ओसियाँ के महावीर मन्दिर (ल. आठवीं शती ई.) से मिली हैं। नौवीं से 13वीं शती ई. के मध्य गुजरात और राजस्थान के श्वेताम्बर जैन मन्दिरों (कुम्भारिया, देलवाड़ा तारंगा, जालोर) में विद्याओं की अनेक मूर्तियाँ उत्कीर्ण हुईं। 16 महाविद्याओं के सामूहिक शिल्पांकन के उदाहरण क्रमशः कुम्भारिया के शान्तिनाथ मन्दिर (11वीं शती ई.), आबू के विमल वसही (दो उदाहरण : रंगमण्डप और देवकुलिका 41, 12वीं शती ई.) एवं लूण वसही (रंगमण्डप, 1230 ई.) से मिले हैं। दिगम्बर पुरास्थलों पर विद्यादेवियों के रूपायन का एकमात्र उदाहरण खजुराहो के आदिनाथ मन्दिर (11वीं शती ई.) की बाह्य भित्ति की वीथिकाओं में उत्कीर्ण है। प्रथम तीर्थंकर ऋषभनाथ के पुत्र बाहुबली को उनकी गहन साधना और त्याग के कारण विशेष प्रतिष्ठा प्राप्त है। श्वेताम्बर और दिगम्बर दोनों ही परम्परा के ग्रन्थों में भरत और बाहुबली के युद्ध और बाहुबली की कठोर तपश्चर्या के विस्तृत उल्लेख हैं। सुनन्दा पुत्र बाहुबली को दक्षिण भारतीय परम्परा में 'गोम्मट या गोम्मटेश्वर' नाम से जाना जाता है। केवली होते हुए भी बाहुबली को जैन कला में साधना, त्याग और अहिंसा का प्रतीक होने के कारण जिनों के समान प्रतिष्ठा मिली। अग्रज भरत चक्रवर्ती पर विजय के अन्तिम क्षणों में सब-कुछ त्यागने का निर्णय लेकर साधना के मार्ग पर चलने वाले बाहुबली को जैनकला में श्रद्धा का शीर्षस्थ स्थान प्रदान किया गया, फलतः विशालतम मूर्तियाँ बाहुबली की बनीं। शिल्प में बाहुबली का दिगम्बर स्थलों पर सर्वाधिक अंकन मिलता है और उसमें भी कर्नाटक के दिगम्बर स्थलों पर। दिगम्बर स्थलों पर छठी-सातवीं शती ई. में बाहुबली का निरूपण प्रारम्भ हो गया, जिसके उदाहरण बादामी एवं अयहोल की गुफा मूर्तियों के रूप में मिलते हैं। ___ दोनों ही परम्पराओं की मूर्तियों में बाहुबली को कायोत्सर्ग-मुद्रा में दिखाया गया है। श्वेताम्बर स्थलों पर बाहुबली धोती पहने दिखाये गये हैं, जबकि दिगम्बर स्थलों पर निर्वस्त्र हैं। बाहुबली की मूर्तियों में सामान्यतया हाथों और पैरों में लता-वल्लरियाँ लिपटी हैं, साथ ही शरीर पर सर्प, वृश्चिक और छिपकली आदि का भी अंकन देवगढ़ एवं खजुराहो की मूर्तियों में हुआ है। एलोरा, श्रवणबेलगोल (चित्र सं. 7), कारकल, वेणूर की मूर्तियों में समीप ही वाल्मीक से निकलते सर्पो का उकेरन हुआ है। ये विशेषताएँ बाहुबली की गहन तपस्या के भाव को मूर्तमान करती हैं। श्रवणबेलगोल 698 :: जैनधर्म परिचय For Private And Personal Use Only
SR No.020865
Book TitleJain Dharm Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhprasad Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2012
Total Pages876
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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