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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आलंकारिक और अलंकारशास्त्र डॉ. कमलेश कुमार जैन संस्कृत अलंकारशास्त्र के क्षेत्र में जैनधर्म के अनुयायी संस्कृतज्ञों की सेवा विशेष महत्त्व रखती है। सम्प्रदायगत भेद के होते हुए भी जैन आचार्यों ने दर्शनादि दूसरे विषयों के अनुरूप अलंकारशास्त्र - सम्बन्धी चिन्तन में पूर्णरूपेण साधिकार योगदान किया है और यही कारण है कि उनके द्वारा रचित अनेक ग्रन्थ उपलब्ध होते हैं, जिनके मनन के बिना संस्कृत अलंकारशास्त्रों की पूर्णता और व्यापकता का ज्ञान सम्भव नहीं है । इन आचार्यों ने प्रतिष्ठित अलंकार-सम्बन्धी सिद्धान्तों का मौलिक ढंग से विवेचन किया है और काव्य के सभी उपादानों पर विचार प्रस्तुत किये हैं । अतः संस्कृत अलंकारशास्त्र में जैनाचार्यों की देन महत्त्वपूर्ण है । प्राचीनतम आचार्य भरतमुनि के नाट्य सम्प्रदाय, भामह तथा उद्भट के अलंकार सम्प्रदाय, दण्डी और वामन के गुण - रीति सम्प्रदाय तथा अन्तिम ध्वनिकार के ध्वनिसम्प्रदाय आदि अलंकार - शास्त्र के यही प्रमुख प्रस्थान अर्थात् सम्प्रदाय हैं । यद्यपि जैनाचार्यों (आलंकारिकों) ने किसी नये सम्प्रदाय का प्रारम्भ नहीं किया, फिर भी इन सभी सम्प्रदायों की मान्यताओं का पूर्णांग मूल्यांकन उनके ग्रन्थों की अद्वितीय विलक्षणता I For Private And Personal Use Only यहाँ सभी जैन- आलंकारिकों का कालानुक्रमिक परिचय तथा उनकी कृतियों का उल्लेख करते हुए अलंकारशास्त्र में उनके योगदान को रेखांकित किया जा रहा है। कल की दृष्टि से प्रथम आचार्य आर्यरक्षित ईसा की प्रथम शताब्दी के विद्वान हैं और अन्तिम आचार्य सिद्धिचन्द्रगणि ईसा की सोलहवीं शती के हैं। इनके अतिरिक्त अन्य कई टीकाकार हुए हैं, जिनकी परम्परा अठारहवीं शती तक मिलती है। इन आचार्यों में आरक्षित विशुद्ध आलंकारिक नहीं हैं, फिर भी उनका समावेश इसलिए किया गया है कि इनकी कृति में प्रसंगवश अलंकारशास्त्र के कुछ महत्त्वपूर्ण तथ्य उपलब्ध होते हैं । प्रसंग के भिन्न होने पर भी उनके द्वारा प्रतिपादित तथ्य साहित्य के लिए उपयोगी सिद्ध होते हैं । अतः उनका विवेचन वांछनीय है । इस परम्परा में दूसरे हैं 'अलंकारदप्पण' के रचयिता अज्ञातनामा आचार्य । प्राकृत भाषा में निबद्ध होने पर भी 'अलंकार602 :: जैनधर्म परिचय
SR No.020865
Book TitleJain Dharm Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhprasad Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2012
Total Pages876
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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