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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir और दिगम्बर दोनों परम्पराओं के ग्रन्थों का उपयोग हुआ है। यह शब्दकोश का हिन्दी संस्करण है। इसका संस्करण भी प्रकाशित हुआ है। इस कोश में पारिभाषिक, उसका मूलपाठ, एवं हिन्दी अनुवाद दिया गया है। यह एक महत्त्वपूर्ण कोश है। ___अहिंसा विश्वकोश- इसके सम्पादक नन्दकिशोर आचार्य हैं। प्रकाशक प्राकृत भारती अकादमी जयपुर एवं भंवरलाल-कांताबाई जैन मल्टी पर्पज फाउंडेशन, जलगाँव है। इसका प्रथम संस्करण 2010 ई0 है। इस विश्वकोश में विभिन्न धर्मों और दर्शनों में विकसित अहिंसा के सिद्धान्त हैं। इसमें अहिंसा के विभिन्न आयाम प्रस्तुत किये गये हैं। यहाँ पर अपरिग्रह विश्वकोश पर कार्य चल रहा है। __मुनि दीपसागरकृत आगम सद्दकोसो, जिनेश्वर सूरि कृत कथाकोशप्रकरण, जिनरत्नकोश भा-1, जैन क्रियाकोश, नानार्थोदय सागर कोश- घासीलाल जी कृत, आर्यिका चन्दनामती कृत भगवान महावीर हिन्दी अंग्रेजी जैनशब्दकोश, आर्यिका विशुद्धमती कृत-रत्नत्रय पारिभाषिक कोश, Encyclopaedia of Jainism-P.C. Nahar, K.C. Ghosal, Encyclopaedia of Jainis-Nagendra Kumar Singh. मुनि राकेश कुमार कृत जैन योग पारिभाषिक शब्दकोश, पुद्गल कोश-बांठियाकृत, वर्धमान जीवन कोश-बांठियाकृत, योगकोश भाग 1-2, एकार्थक कोश, जैन आगम वनस्पति कोश, जैन आगम प्राणी कोश, जैन आगम वाद्य कोश आदि भी है। ये कोश प्रत्यक्षतः देख नहीं पाने से उनके विशेष परिचय नहीं दिये जा रहे हैं। जैन पुराणकोश- जैन विद्या संस्थान, दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र श्रीमहावीर जी द्वारा सन् 1993 में इसका प्रकाशन हुआ। इसमें 12609 नाम संकलित हैं। इसमें पारिभाषिक तथा संज्ञा शब्दों का व्याख्यासहित संकलन किया गया है। इस कोश का आधार पद्मपुराण, महापुराण, हरिवंश पुराण, पांडव पुराण और वीरवर्धमान चरित ये पाँच पुराण हैं। ___ इस प्रकार जैन सन्तों एवं अन्य ग्रन्थकारों द्वारा प्राकृत, संस्कृत, अपभ्रंश, देशी तथा आधुनिक भाषाओं के प्राचीन व आधुनिक कोशादि ग्रन्थों का यह संक्षिप्त विवरण है। वर्तमान में भी अनेक विद्वानों, संस्थानों द्वारा जैन-दर्शन-विषयक कोशों एवं विश्वकोशों पर कार्य चल रहे हैं। इस आलेख में यह दृष्टि और प्रयत्न रहा है कि जैन परम्परा से सम्बद्ध किसी भी प्रकाशित-अप्रकाशित, उपलब्ध-अनुपलब्ध कोश ग्रन्थ का न्यून या अधिक परिचय एक स्थान पर मिल जाये। निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि जैन परम्परा में कोश प्रणयन की एक विस्तृत श्रृंखला है, जिससे भारतीय वाङ्मय समृद्ध एवं गौरवशाली बना है। जैन सन्तों, विद्वानों ने भारत की विभिन्न भाषाओं में विविध प्रकार के कोशों का निर्माण करके विविध 600 :: जैनधर्म परिचय For Private And Personal Use Only
SR No.020865
Book TitleJain Dharm Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhprasad Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2012
Total Pages876
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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