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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir बहुत कम प्राकृत साहित्य प्रकाश में आ पाया था, कई ग्रन्थों का विधिवत् सम्पादन भी नहीं हुआ था, अतएव अद्यतन संस्करण निकालने की आवश्यकता है। पुरातन जैन वाक्य -: - सूची - यह एक विशेष प्रकार का कोश - ग्रन्थ है। इसके सम्पादक पं. जुगल किशोर मुख्तार हैं। इस कोश में 64 मूल ग्रन्थों के पद्य या वाक्य अकारादि क्रम से संयोजित हैं। साथ ही इसमें 48 टीकादि व्याख्यात्मक ग्रन्थों में उद्धृत प्राकृत पद्य भी संगृहीत हैं। इस तरह इस कोश में 25352 प्राकृत पद्यों की अनुक्रमणिका है। कोश के आधारभूत ग्रन्थ प्रायः दिगम्बर परम्परा के हैं। सन् 1950 में वीर सेवा मन्दिर से इसका प्रकाशन हुआ। प्रारम्भ में 168 पृष्ठों की महत्त्वपूर्ण प्रस्तावना है, जिसमें सम्पादक ने उपयुक्त ग्रन्थों और ग्रन्थकारों के समय व योगदान पर अध्ययन प्रस्तुत किया है। जैनविद्या के शोधकर्ताओं के लिए यह ग्रन्थ बहुत उपयोगी है। जैन - ग्रन्थ- प्रशस्ति संग्रह - यह भी एक विशिष्ट कोश है। इसका प्रकाशन दो भागों में वीर सेवा मन्दिर से हुआ । प्रथम भाग का प्रकाशन सन् 1954 में पं. परमानन्द शास्त्री के सहयोग से पं. जुगलकिशोर मुख्तार के सम्पादकत्व में हुआ । इसमें प्राकृत, संस्कृत भाषाओं के 171 ग्रन्थों की प्रशस्तियों का संकलन है। इन प्रशस्तियों का ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक दृष्टि से बहुत महत्त्व है । इनमें संघ, गण, गच्छ, वंश, गुरुपरम्परा, स्थान, समय आदि का विवरण मिलता है। इस भाग में कुछ परिशिष्ट दिए गये हैं, जिनमें प्रशस्ति में आये भौगोलिक नामों, संघों, गणों, गच्छों, स्थानों, राजाओं, राजमन्त्रियों, विद्वानों, आचार्यों, भट्टारकों तथा श्रावक-श्राविकाओं के नामों की सूची आदि अकारादिक्रम से संयोजित की गयी है। प्रथम भाग के लिए पं. परमानन्द शास्त्री द्वारा लिखित प्रस्तावना ( पृष्ठ 1-113) अधिक महत्त्वपूर्ण है । प्रशस्तिसंग्रह के द्वितीय भाग का प्रकाशन सन् 1963 में वीर सेवा मन्दिर, देहली से हुआ। इसमें विशेषकर अपभ्रंश ग्रन्थों की 122 प्रशस्तियाँ संकलित हैं। ये प्रशस्तियाँ साहित्य और इतिहास के साथ ही सामाजिक और धार्मिक रीति-रिवाजों पर गहरा प्रकाश हैं । इसकी अधिकांश प्रशस्तियाँ अप्रकाशित हस्तलिखित ग्रन्थों से ली गयीं है ग्रन्थ में कुछ परिशिष्ट हैं, जिनमें भौगोलिक, ग्राम, नगर, नाम, संघ, गण, गच्छ, राजा आदि को अकारादि क्रम से रखा गया है। सम्पादक पं. परमानन्द शास्त्री की 150 पृष्ठीय प्रस्तावना बहुत उपयोगी है। 1 प्रशस्ति-संग्रह — इसका सम्पादक पं. के. भुजबली शास्त्री द्वारा किया गया । वि. सं. 1909 में जैन सिद्धान्त भवन, आरा से इसका प्रकाशन हुआ। इसमें 39 ग्रन्थकारों द्वारा लिखित प्रशस्तियाँ और साथ में उनका संक्षिप्त सारांश हिन्दी में दिया गया है। जैन जेम डिक्शनरी (Jain Gem Dictionary) - इसका सम्पादन जुगमन्धरलाल जैन (जे. एल. जैनी) ने किया था। सन् 1919 में आरा से इसका प्रकाशन हुआ। जैन 594 :: जैनधर्म परिचय For Private And Personal Use Only
SR No.020865
Book TitleJain Dharm Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhprasad Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2012
Total Pages876
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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