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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org प्राकारों-गोपुरों से युक्त सर्व - रत्न - मय उज्ज्वल नगरियाँ हैं । इनसे 10 योजन ऊपर आभियोग्य जाति के देवों के मणि-निर्मित भव्य भवन / प्रासाद हैं । इनसे भी 5 योजन ऊपर 10 योजन विस्तृत पर्वत शिखर पर पूर्णभद्रा श्रेणी है, जहाँ विजयार्ध नामक देव रहता है। इस श्रेणी पर स्वर्णमय 9 कूट हैं । पूर्वी प्रथम कूट सिद्धायतन है, जिस पर जिनालय है | विजयार्ध पर्वत भरतक्षेत्र को उत्तर-दक्षिण दो भागों में बाँटता है 198 विजयार्ध पर्वत 534 :: जैनधर्म परिचय कुर्य प्रवणभरत लिखि पूर्णभद्राणि प्रपात मिपिस्व free zo कुट कट ree कुण्डलवर पर्वत व ट्रीप Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ऐरावत क्षेत्र और 32 विदेहों में भी इसी तरह के विजयार्ध पर्वत उन-उन क्षेत्रों को उत्तर-दक्षिण भागों में विभक्त करते हैं । विदेहों के विजयार्थों पर उत्तर - दक्षिण में 55-55 विद्याधर नगरियाँ हैं । आयलर द्वीप कुंडलगिरि - ग्यारहवें कुंडलवर द्वीप के मध्य में मानुषोत्तरवत् वलयाकाररूप से अवस्थित 75 हजार योजन ऊँचा स्वर्णमय कुंडलगिरि है । यह मानुषोत्तर पर्वत से दस गुना विस्तृत है। इसके शिखर पर चारों दिशाओं में देवों-सम्बन्धी चार-चार कूट हैं और एक-एक कूट जिनेन्द्र भगवान सम्बन्धी भी है । इस तरह इस पर कुल 20 कूट हैं । चार कूटों पर जिनालय हैं, शेष पर कूटनामधारी देव रहते हैं । कूटों की स्थिति में मत-1 त - भिन्नता भी है ।199 मिदान For Private And Personal Use Only गा THUMERUT Au
SR No.020865
Book TitleJain Dharm Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhprasad Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2012
Total Pages876
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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