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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पांडुक वन में ईशान आदि विदिशाओं में 100 योजन लम्बी और 50 योजन चौड़ी चार शिलाएँ हैं। ईशान में स्वर्णमय पांडुक शिला है, जिस पर भरतक्षेत्र के तीर्थंकरों का जन्माभिषेक होता है। आग्नेय में रजतमय पांडुकम्बला शिला पर पश्चिम विदेह के तीर्थंकरों का, नैऋत्य में न तप्तस्वर्णमय रक्ताशिला पर ऐरावत क्षेत्र के तीर्थंकरों का तथा वायव्य में रुधिरवर्णा रक्ताकम्बला शिला पर पूर्व विदेह के तीर्थंकरों का जन्माभिषेक होता है। पाण्इकवन कुबेर देव पाण्डकभवन पाण्इकवन: भरतक्षेत्र के तीर्थ Ang पर्व विदेह के तीन रक्तशिल्लक पाण्डकाशला 10 हरिभवन. तरूणदेव | लोहित भवन ++ सोमदेव 4 रतकम्बला बल क्षेत्र के तीर्थकर अपर विदह - अंजनभवन (*उस उस विशला पर उस उस चमदे मेत्रकैतीर्थकरीका जम्माभिरकोटा देवकुरु-उत्तरकुरु - विदेह क्षेत्र में सुमेरु पर्वत के दक्षिण में देवकुरु तथा उत्तर में उत्तरकुरु है। देवकुरु पूर्व में सौमनस से तथा पश्चिम में विद्युत्प्रभ गजदन्त पर्वतों से घिरा है तथा उत्तरकुरु पूर्व में माल्यवान से और पश्चिम गन्धमादन गजदन्त पर्वतों से घिरा है। दोनों कुरुक्षेत्रों में उत्तम भोगभूमि होने से सुषमा-सुषमा-काल जैसी वर्तना सदा रहती है। विस्तार कुरु Fevenागन का sammu sh.. ORE भूगोल :: 525 For Private And Personal Use Only
SR No.020865
Book TitleJain Dharm Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhprasad Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2012
Total Pages876
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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