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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir है, अनाग्रही है, अनासक्त है और करता है सत्य का बहुविध संस्पर्श भी। चित्त चैत्य है, यानी सत्य चेतना-स्वरूप है। विज्ञान में तर्क का अवसर रहता है, तो जैनधर्म का वैज्ञानिक दर्शन भी कार्य-कारण सम्बन्ध को रेखांकित करता है। सत्य और ज्ञान भिन्न नहीं, प्रत्युत एक सिक्के के दो पहलू हैं, जिनके सन्धान में विज्ञान भी सन्नद्ध है, तो धर्म की भी वही तो मंजिल है। सत्य जानना है, मानना नहीं। मानना दासता है; अन्य की खोज व मान्यता के प्रति समर्पण है। जानना निज का है, निज का अनुभव करता है- ज्ञाता, द्रष्टा भाव की परिणति। जीवन का सत्य और गणित अतीव रहस्यपूर्ण है। जानना विज्ञान है, जिसमें खोज निरन्तर है। जैन दृष्टि जानने की है। तीर्थंकर मार्ग दिखाते हैं, बनाते नहीं हैं। वे द्रष्टा-ज्ञाता होकर साक्षी होते हैं। किसी भाषा, विचार, आचार या व्यवहार में बँधते नहीं हैं, बाँधते भी नहीं। हर नया प्रयोग अपने समय में क्रान्ति का स्वरूप अंगीकृत कर परिवर्तन लाता है और बन जाता है; वही, समय के साथ, परम्परा भी। इसलिए, जानना, देखना और बोध करना ही जीवन-क्रान्ति है, वैज्ञानिक दृष्टि के साथ जीवन जीने की कला है। जैन धर्म-दर्शन इसी क्रान्ति का प्रणेता है। वहाँ न व्यक्ति के प्रति आग्रह है और न ही किसी विचार या फिर मत के प्रति दुराग्रह भी। आचार में अहिंसा, विचार में अनेकान्त और व्यवहार में 'भी' सूत्र ऐसी अनुपम युति है, जिसमें विवाद, हिंसा या हस्तक्षेप का अवसर ही नहीं रहता है और धर्म के वस्तुस्वभावी स्वरूप की सफल साधना हो जाती है। दो धाराओं के सम्मिलन का यह मात्र सन्धि-स्थल नहीं, प्रत्युत यह तो है एक समेकित-चिन्तन प्रवाह, जहाँ साधना में रुढ़ तत्त्व नहीं, आडम्बर नहीं, थोपी हुई श्रद्धा नहीं, बोझ बन गयी आराधना-पद्धति नहीं बल्कि चित्त में प्रवाहित होने वाला पवित्र और निर्मल प्रवाह है सात्विकता का, चैतन्यशीलता का और मुक्ति की साधनाशीलता का भी, सम्यक्त्व के चिन्तन से स्फूर्त रहकर; सदैव। सन्दर्भ : 1. तत्त्वार्थसूत्र :उमास्वामी; 1994, अ क्लासिक मैनुअल फॉर अंडरस्टैंडिंग द टू नेचर आफ ___रिएलिटी-नथमल टटिया, हार्पर कॉलिन्स, सैन फ्रांसिस्को 2. द कम्प्लीट वर्क आफ अरिस्टो। टल; जोनाथन बार्नेस (सम.), 1984, प्रिसंटन यूनीवर्सिटी 3. द हिडेन हार्ट आफ द कोसमोस: ह्यूमानिती एण्ड द निउ स्टोरी: ब्राइन स्विम्मे; 1996, __मैरिक्नोल, न्युयोर्क 4. जैन सूत्र: आचारांग सूत्र एवं कल्पसूत्रः हर्मन जैकोबी, 1984. डोवर, न्युयोर्क 494 :: जैनधर्म परिचय For Private And Personal Use Only
SR No.020865
Book TitleJain Dharm Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhprasad Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2012
Total Pages876
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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