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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir के पालन के साथ सप्तव्यसन का त्यागी होता है। जो व्रतों में अभ्यस्त होता है, वह नैष्ठिक श्रावक होता है, इसी के द्वारा बारह व्रतों का पालन किया जाता है। यह नौवीं प्रतिमा तक के नियमों का पालन करने वाला होता है तथा जो समाधिमरण की साधना करता है, वह साधक श्रावक कहलाता है। ये दसवीं, ग्यारहवीं प्रतिमा के धारक होते हैं। इसी कारण से ग्यारह प्रतिमाओं के लक्षण भी दिए जा रहे हैं, क्योंकि ये तीनों श्रावक इनके धारक हो सकते हैं ग्यारह प्रतिमाएँ-प्रत्याख्यानावरण कषाय के उदय की हीनाधिकता के कारण देशचारित्र ग्यारह प्रतिमाओं में विभक्त होता है। जो निम्नोक्त बिन्दुओं के माध्यम से प्रदर्शित किया जा रहा है • सम्यग्दर्शन के साथ आठ मूलगुण धारण करना तथा सात व्यसनों का त्याग करना दर्शन-प्रतिमा है। ___ • पाँच अणुव्रत, तीन गुणव्रत और चार शिक्षाव्रत, इस प्रकार बारह व्रतों का धारण करना व्रत-प्रतिमा है। • प्रतिदिन तीन सन्ध्याओं में विधिपूर्वक सामायिक करना सामायिक-प्रतिमा है। • प्रत्येक अष्टमी और चतुर्दशी को सोलह प्रहर का उपवास करना प्रोषध-प्रतिमा है। • सचित्त वस्तुओं के सेवन का त्याग करना सचित्तत्यागप्रतिमा है। • मन, वचन, काय और कृत, कारित, अनुमोदना से रात्रिभोजन का त्याग करना रात्रिभुक्तित्याग-प्रतिमा है अथवा इस प्रतिमा का दूसरा नाम दिवा मैथुन-त्याग भी है, जिसका अर्थ है नव कोटियों से दिन में मैथुन का त्याग करना। • स्त्री मात्र का परित्याग कर ब्रह्मचर्य से जीवन व्यतीत करना ब्रह्मचर्य-प्रतिमा है। • व्यापार आदि आरम्भ का त्याग करना आरम्भ-त्याग-प्रतिमा है। • निर्वाह के योग्य वस्त्र तथा बर्तन रख कर शेष समस्त परिग्रह का स्वामित्व छोड़ना परिग्रहत्यागप्रतिमा है। • व्यापार आदि लौकिक कार्यों की अनुमति का त्याग करना अनुमतित्याग- प्रतिमा है। • अपने निमित्त से बनाये हुए आहार का त्याग करना उद्दिष्टत्याग-प्रतिमा है। साधक उत्तरोत्तर विकास की ग्यारह श्रेणियाँ (प्रतिमाएँ) पार करता हुआ मुनिपद की ओर अग्रसर होता है और आत्मस्वरूप को प्राप्त करता है। श्रावक के मूलगुण-श्रावक आठ मूलगुणों का धारक होता है। जैसे वृक्ष में जड़ मुख्य होती है, उसी प्रकार गुणों में मूलगुण प्रधान होते हैं। अनेक आचार्यों ने इनका वर्णन किया है। श्रीमद् उमास्वामी कृत 'तत्त्वार्थसूत्र' में श्रावक के बारह व्रतों का तो विवरण है, किन्तु उसमें मूलगुणों का उल्लेख नहीं है। श्रावक के अष्ट मूलगुणों का सर्वप्रथम स्पष्ट निर्देश आचार्य समन्तभद्र रचित 'रत्नकरण्डकश्रावकाचार' में मिलता है। 310 :: जैनधर्म परिचय For Private And Personal Use Only
SR No.020865
Book TitleJain Dharm Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhprasad Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2012
Total Pages876
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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