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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir से आत्मा में क्षायिक चारित्र गुण प्रकट होता है। यह भी अनन्तकाल रहने वाला अत्यन्त विशुद्ध तथा अविनाशी होता है। यह बारहवें गुणस्थान से सिद्ध भगवान् तक में पाया जाता है। 3. क्षायोपशमिक भाव-घातिया कर्मों के सर्वघाति स्पर्धकों के अनुदय तथा देशघाती स्पर्धकों के उदय से आत्मा में ज्ञान-दर्शन-शक्ति, सम्यक्त्व तथा चारित्र गुण की जो आंशिक प्रकटता होती है, वह क्षायोपशमिक भाव कहलाता है। इसके 18 भेद हैं: (अ) क्षायोपशमिक ज्ञान- मतिज्ञानावरण, श्रुतज्ञानावरण, अवधिज्ञानावरण तथा मनःपर्ययज्ञानावरण के क्षयोपशम होने से इन चारों ज्ञानों का आंशिक प्रकट होना क्षायोपशमिक भाव कहलाता है। इसके चार भेद हैं : मतिज्ञान, श्रुतज्ञान, अवधिज्ञान तथा मन:पर्यय ज्ञान। इनमें से प्रथम तीन का सद्भाव चौथे गुणस्थान से बारहवें गुणस्थान तक तथा मनःपर्यय ज्ञान का सद्भाव छठे से बारहवें गुणस्थान तक पाया जाता है। ये चारों ज्ञान सम्यग्दृष्टि जीवों के ही होते हैं। मनःपर्ययज्ञान को छोड़कर इनका सद्भाव चारों गतियों में सम्भव है। मनःपर्ययज्ञान मात्र मनुष्यगति में मुनिराजों के ही सम्भव है। (आ) क्षायोपशमिक अज्ञान- मतिज्ञानावरण, श्रुतज्ञानावरण तथा अवधिज्ञानावरण कर्मों का क्षयोपशम होने से मिथ्यादृष्टि जीवों के, ये तीन क्षायोपशमिक अज्ञान भाव होते हैं। ये चारों गति के जीवों के पाये जाते हैं। इसके तीन भेद हैं। (इ) क्षायोपशमिक दर्शन- जहाँ आत्मा का दर्शन-गुण आंशिक प्रकट होता है, वह क्षायोपशमिक दर्शन कहलाता है। इसके तीन भेद हैं___ (1) चक्षुर्दर्शन-चक्षु इन्द्रिय से होने वाले ज्ञान से पहले आत्मा का जो प्रयास होता है, वह चक्षुर्दर्शन है। चक्षुर्दर्शनावरण कर्म के क्षयोपशम से यह दर्शन-गुण का अंश प्रकट होता है। समस्त चार इन्द्रिय, पंचेन्द्रिय सैनी व असैनी जीवों के यह भाव होता है। ___ (2) अचक्षुर्दर्शन- अचक्षुर्दर्शनावरण कर्म के क्षयोपशम से आत्मा के दर्शन-गुण का आंशिक प्रकट होना, अचक्षुर्दर्शन भाव है। सभी संसारी जीवों के (12वें गुणस्थान तक) यह क्षायोपशमिक भाव अवश्य पाया जाता है। चक्षु इन्द्रिय के अलावा अन्य चारों इन्द्रियों तथा मन से होने वाले ज्ञान से पूर्व आत्मा का जो प्रयास होता है, (सामान्य अवलोकन) उसे अचक्षुर्दर्शन भाव कहते हैं। (3) अवधि दर्शन- अवधिदर्शनावरण कर्म के क्षयोपशम होने से आत्मा में जो अवधिज्ञान से पूर्व सामान्य अवलोकन होता है, वह अवधिदर्शन कहलाता है। यह चारों गति के सम्यग्दृष्टि अवधिज्ञानी जीवों के पाया जाता है। ___(ई) क्षायोपशमिक लब्धि- अन्तरायकर्म का क्षयोपशम होने से प्रत्येक संसारी जीव के (12वें गुणस्थान तक) पाँचों लब्धि सम्बन्धी शक्ति की आंशिक प्रकटता रूप यह भाव होता है। इसके पाँच भेद हैं- दान, लाभ, भोग, उपभोग तथा वीर्य। (उ) क्षायोपशमिक सम्यक्त्व- सम्यक्त्व की घातक सात प्रकृतियों में से, सम्यक् 266 :: जैनधर्म परिचय For Private And Personal Use Only
SR No.020865
Book TitleJain Dharm Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhprasad Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2012
Total Pages876
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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