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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अवस्था का ज्ञान होता है, इसे ही द्रव्य की तात्कालिक पर्याय कहा जाता है। ___ जैसे- फोटो खींचने पर हमें यह पता चलता है कि इतने बजकर, इतने मिनिट, इतने सेकेण्ड पर वह गाड़ी यहाँ थी, ऐसी थी, उस समय इतनी स्पीड थी, आदि। उसी प्रकार प्रत्येक द्रव्य परिणमन करता हुआ निश्चित समय पर कहाँ था, कैसा था, उसके भाव कैसे थे,- आदि का पता चलता है। जैसे- रेलगाड़ी पूर्व-पूर्व अवस्था या स्टेशन को छोड़ती जाती है और नवीन-नवीन अवस्था या स्टेशन को प्राप्त करती रहती है, - यही उसका व्यय और उत्पाद है तथा वह अपनी पटरी को नहीं छोड़ती, अपने मार्ग को नहीं छोड़ती है, - यही उसका ध्रौव्यपना है; उसी प्रकार परिणमन-स्वभाव के कारण ही द्रव्य पूर्व-पूर्व अवस्था का त्याग और नवीन-नवीन अवस्था का ग्रहण करता जाता है, –यही व्यय और उत्पाद है, परन्तु अपने मौलिक स्वभाव को वह नहीं छोड़ता –यही उसका ध्रौव्यपना है। जैसे- रेलगाड़ी में उसके डब्बे और मार्ग में आनेवाले स्टेशन आदि निश्चित होते हैं, उसी प्रकार प्रत्येक द्रव्य की पर्यायें और उनके निमित्त-नैमित्तिक सम्बन्ध वाले संयोग भी निश्चित होते हैं। __ जैसे- कौनसी रेलगाड़ी, कितने बजे, कहाँ, किस स्पीड से, किस इंजन के माध्यम से, किस अवस्था में पहुँचती है - यह निश्चित होता है; उसी प्रकार प्रत्येक द्रव्य कब, कहाँ, किस पुरुषार्थ-पूर्वक, किस निमित्त के माध्यम से, किस अवस्था में होगी- यह भी निश्चित होता है। जैसे- कोई महान ज्योतिषी या निमित्तवेत्ता भूत-भविष्य में होने वाली रेलगाड़ी की दुर्घटना आदि की जानकारी दे देता है; उसी प्रकार सर्वज्ञ भगवान या विशेष अवधिमन:पर्ययज्ञानी या कदाचित् विशेष निमित्तज्ञानी भी भूत-भविष्य में होने वाली घटनाओं को जानते हैं, कदाचित् उपस्थित हों तो बता भी देते हैं, उनकी दिव्यध्वनि में भी आ जाता है। एक गुण की एक समय में एक ही पर्याय का मतलब ___ एक गुण की एक समय में एक ही पर्याय होती है- यह निर्विवाद सिद्धान्त है क्योंकि क्रमभावी पर्यायें क्रमशः ही होती हैं, अतः एक गुण की दो पर्यायें या अधिक पर्यायें एक-साथ नहीं हो सकती हैं? गुणों के परिणमन का अर्थ क्या? __ सामान्यतया गुणों के परिणमन को पर्याय कहते हैं। यद्यपि यह परिभाषा स्थूलदृष्टि से ठीक है, परन्तु सूक्ष्मदृष्टि से विचार करें तो उसका जवाब यह है कि 'गुण' परिणमन नहीं करता; 'द्रव्य' परिणमन करता है तथा उस परिणमनशील द्रव्य की तात्कालिक 250 :: जैनधर्म परिचय For Private And Personal Use Only
SR No.020865
Book TitleJain Dharm Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhprasad Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2012
Total Pages876
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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