SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 157
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सम्पत्ति को बाँटे जाने का उल्लेख है। उत्तराधिकार में कुछ अयोग्यताएँ भी बतायी गयी हैं: ____ 1. पैदायशी नपुंसकता या ऐसे रोग का रोगी जो चिकित्सा करने से निरोग नहीं हो सकता। 2. जो सब प्रकार से सदाचार का विरोधी हो। 3. उन्मत्त, लँगड़ा, अन्धा, रजील (क्षुद्र-नीच), कुब्जा। 4. जातिच्युत, अपाहिज, माता-पिता का घोर विरोधी, मृत्युनिकट, गूंगा, बहरा, अति-क्रोधी, अंगहीन। ऐसे व्यक्ति केवल गुजारे के अधिकारी हैं, भाग के नहीं। परन्तु यदि उनका रोग शान्त हो, गया है, तो वह अपने भाग के अधिकारी हो जाएँगे। नहीं तो उनका भाग उनकी पत्नियों या पुत्रों को यदि वे योग्य हो, पहुँचेगा या पुत्री के पुत्र को मिलेगा। दायभाग की अयोग्यता का यह भाव नहीं है कि मनुष्य अपनी निजी सम्पत्ति से भी वंचित कर दिया जाए। साधु का भाग- यदि कोई पुरुष विभाजित होने से पूर्व साधु होकर चला गया हो, तो स्त्री धन को छोड़कर, सम्पत्ति के भाग उसी प्रकार लगाने चाहिए जैसे उसकी उपस्थिति में होते और उसका भाग उसकी पत्नी को दे देना चाहिए। यदि उसके एक पुत्र ही है, तो वह स्वभावतः अपने पिता के स्थान को ग्रहण करेगा। यदि कोई व्यक्ति अविवाहित मर जाए अथवा साधु हो जाए, तो उसका भाग उसके भाई-भतीजों को यथा-योग्य मिलेगा। ___ माता के अधिकार- यदि पिता की मृत्यु पश्चात् बाँट हो, तो माता को पुत्र के समान भाग मिलता है। वास्तव में उल्लेख तो यह है कि उसे पुत्रों से कुछ अधिक मिलना चाहिए, जिससे वह परिवार और कुटुम्ब की स्थिति को बनाये रक्खे। इस प्रकार यदि पुत्र और एक विधवा जीवित है, तो मृतक की सम्पत्ति के 5 समान भाग किये जाएँगे, जिनमें से एक माता को और शेष चार में से एक-एक प्रत्येक भाई को मिलेगा। माता को कितना अधिक दिया जाये इसकी सीमा नियत नहीं है। परन्तु अर्हन्नीति में इस प्रकार का उल्लेख है कि पिता के मरण के पश्चात् यदि बाँट हो, तो प्रत्येक भाई अपने-अपने भाग में से आधा-आधा माता को देवे। इस प्रकार यदि चार भाई हैं, तो प्रत्येक भाई चार आना हिस्सा पाएगा और माता का भाग चार आने के अर्द्धभाग का चौगुना होगा अर्थात् 2x 4=8 आना होगा। पिता की जीवनावस्था में माता को एक भाग बाँट में मिलना चाहिए। पुत्रोत्पत्ति होने से माता एक भाग की अधिकारिणी हो जाती है। माता का वह भाग उसके मरण पश्चात् सब-भाई परस्पर समानता से बाँट लें। बहिनों का अधिकार- विभाजित होने के पश्चात् जो सम्पत्ति पिता ने छोड़ी है, 148 :: जैनधर्म परिचय For Private And Personal Use Only
SR No.020865
Book TitleJain Dharm Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhprasad Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2012
Total Pages876
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy