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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir समाज ने दूसरे समाजों की तरह अलग-अलग अपने राजनीतिक दावे नहीं रखे, विशेषाधिकार माँगकर कभी देश की प्रगति में बाधा नहीं पहुँचाई और धर्म-संस्कृति आदि की स्वतन्त्रता होते हुए भी कभी अपने लिए किसी स्थान या स्वतन्त्र राष्ट्र की कल्पना नहीं की।' जोधपुर से प्रकाशित होने वाले 'ओसवाल' के अंक में प्रकाशित राष्ट्रीय गौरव से युक्त एक पद्य द्रष्टव्य है 'बढ़ो-बढ़ो पीछे मत हटना, भारत का कल्याण करो। जननी जन्म भूमि चरणों में, जीवन का बलिदान करो।।' इसी तरह 'तरुण ओसवाल' में प्रकाशित निम्न पंक्तियाँ भी कितनी उत्प्रेरक हैं 'तरुण नींद को छोड़ पहन लो, सत्याग्रह का सैनिक वेष। मोहपाश को तोड़ देश-हित, सह लो सब संकट अरु क्लेश।। सुभाष जवाहर सम भारत के, युवक वीर बनते जाओ। योद्धा हम स्वतन्त्रता के, ध्येय मन्त्र जपते जाओ।।' 'अनेकान्त' (सम्प्रति, दिल्ली से प्रकाशित) ने अपने अनेक अंकों में राष्ट्रीयता का समर्थन किया था। गाँधी जी के जेल जाने पर पत्र के वर्ष 1, किरण 6-7 में लिखा गया है'महामना निष्पाप, राष्ट्रहित जग के प्यारे, हिंसा से अतिदूर, सौम्य बहुपूज्य हमारे। गाँधी से नररत्न जेल में ठेल दिए हैं, क्या आशा वे धरे नहीं जो जेल गये हैं।।' 'वीर' (सम्प्रति, नई दिल्ली से प्रकाशित) जैन समाज में सुधारवादी पत्र के नाम से प्रसिद्ध था। उसे जैन समाज के राजा राममोहन राय कहे जाने वाले ब्र. शीतलप्रसाद जी जैसे समाज-सुधारकों का सहयोग मिला। कुरीतियों के उन्मूलन में पत्र अपनी उपमा आप था। इसके साथ यह राष्ट्रीय अखबार भी था। डॉ. जयकुमार 'जलज' ने ठीक ही लिखा है- 'वीर' पाठशालावादी और परीक्षाफलछापू अखबार नहीं था। वह जैन होते हुए भी एक व्यापक और उदार राष्ट्रीय अखबार था। उसके सम्पादक खुद स्वतन्त्रता आन्दोलन में सपत्नीक जेल जा चुके थे। वे गाँधीवादी थे।...उनका पत्र उनके राष्ट्रीय विचारों का वाहक बन गया था। आजादी, देशभक्ति, गाँधी, नेहरू, सुभाष पर तथा ढिल्लन, सहगल, शाहनवाज की गिरफ्तारी के विरोध जैसे विषयों पर रचनाएँ छपती थीं। राष्ट्रीय समाचारों, निर्णयों और घटनाओं को प्रमुखता से प्रकाशित किया जाता था।" 136 :: जैनधर्म परिचय For Private And Personal Use Only
SR No.020865
Book TitleJain Dharm Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhprasad Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2012
Total Pages876
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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