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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 'दिल्ली षड्यन्त्र केस' के प्रमुख अभियुक्त रहे थे। पंजाब, हरियाणा और हिमाचल में जैन जेल यात्रियों की संख्या नगण्य है। हिमाचल प्रदेश के स्वतन्त्रता सेनानी' पुस्तक के दो भाग देखने पर केवल एक जैन स्वतन्त्रता सेनानी मिला। 1933 में पंजाब प्रान्तीय कौंसिल का चुनाव जीतने वाली श्रीमती लेखवती जैन पूरे भारत में चुनाव जीतने वाली पहली महिला सदस्या थीं। श्री विजय सिंह नाहर बंगाल के उपमुख्यमन्त्री रहे थे। पराधीन भारत के प्रायः प्रत्येक नागरिक की यह भावना थी कि- अंग्रेज यहाँ से जाएँ जिससे हम स्वतन्त्रता की आवोहवा में साँस ले सकें, यहाँ के निवासियों के अपने नियम हों, अपने कानून हों, उन्हें अभिव्यक्ति की, अपनी बात कहने की स्वतन्त्रता हो। यह शाश्वत सिद्धान्त है कि-'पराधीनता की स्थिति में कोई भी राष्ट्र उन्नति नहीं कर सकता।' ___ 'स्वतन्त्रता व्यक्ति का जन्मसिद्ध अधिकार है' यह भावना प्रायः प्रत्येक भारतीय के हृदय में घर कर चुकी थी। आजादी के लिए छोटी-बड़ी लड़ाइयाँ होती रहीं। भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन का संगठित आरम्भ 1857 की क्रान्ति से माना जाता है। इस आन्दोलन में सभी जाति और सम्प्रदाय के लोगों ने बिना किसी भेद-भाव के भाग लिया और अपनी शक्ति अनुसार योगदान दिया। कितने ही लोग शहीद हो गये। अनेकों ने जेल की दारुण यातनाएँ सहीं पर वे झुके नहीं। एक बार केसरिया बाना पहना तो बस हमेशा के लिए पहन लिया। उन्होंने आजादी प्राप्त कर ही दम लिया। स्वतन्त्रता के इस आन्दोलन में वृद्धों, युवकों, बच्चों, महिलाओं सभी ने भाग लिया था। जैन समाज के लोग भी इसमें पीछे नहीं रहे। आन्दोलन के समय अनेक जैनों ने जेल की दारुण यातनाएँ सहीं, जो किसी कारणवश जेल नहीं जा सके, उनके योगदान को भी कम करके नहीं आँका जाना चाहिए। जैन समाज प्राय: सभी प्रदेशों/प्रान्तों में धनिक समाज रहा है अतः इस समाज के लोगों ने आन्दोलन में भरपूर आर्थिक सहयोग दिया। अनेक लोग ऐसे हैं, जिन्हें पुलिस ने गिरफ्तार तो कर लिया किन्तु उम्र कम होने के कारण थाने में ही छोड़ दिया, अनेक लोग ऐसे भी हैं जो भूमिगत रहकर कार्य करते रहे, पुलिस लाख कोशिशों के बाद भी उन्हें गिरफ्तार नहीं कर सकी। ____ जब कोई व्यक्ति जेल चला जाता है तो उसके परिवार की आर्थिक स्थिति डाँवाडोल हो जाना स्वाभाविक है। कमाने वाला न हो तो घर कैसे चले? इधर आमदनी बन्द उधर तरह-तरह के खर्चे । आर्थिक रूप से सम्पन्न होने के कारण जैन समाज के लोगों ने जेल जाने वाले व्यक्तियों के परिवारों की चुपचाप भरपूर आर्थिक सहायता की थी। 126 :: जैनधर्म परिचय For Private And Personal Use Only
SR No.020865
Book TitleJain Dharm Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhprasad Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2012
Total Pages876
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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