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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallashsagarsun Gyanmandir पायम् / यतो भूयिष्ठान्तेनमउक्ति विधम वहुतरां तव नमस्कारोक्तिं कुर्मःव्याख्यातायाः पुनर्वचनं विशेषार्थम् // 16 // हिरण्मयेन / इदानीमादित्योपासनमाह / यद्यपि हिरण्मयरूपेण पाबण येनरोप्यमयेन पावे ण / भिवन्त्यस्मिन्निवस्थितांरसारश्मय इतिपात्रमण्डलम् / तेनपाचेण मण्डलेन सत्यस्याविनाशिनः पुरुषस्य अपिहितमन्तर्हितम् / मुखंशरीरम् / तथापि यः असौव्वयुनानिबिद्दान्॥ वुयोड्युस्म्म हुगणमेनोभूयिष्ठान्तुनमंऽउक्ति विधेम // 16 // हिरगणमयेनुपात्रेण // सुत्तास्यापिहितुरमुखम् // योसावादित्यपुरुषसोसावहम् // 17 // ओं३ आदि त्य पुरुषः योगिभिरुपलक्ष्यते / सःअसौअहम्अस्मि / एतांचोपासनांकुर्यात् // 17 // ओखंब्रह्म / ओमितिनाम निर्देश: / पाकाशस्वरूप ब्रह्मधायेत् आन्मत्वेन / नन्वचेतन आकाश: चेतनआत्मा / तद्यथा। विज्ञानमानन्दब्रह्मइति तत्रानन्दप्रतिपादकंवाक्यम् / सयोमनुष्याणांराव: समृद्धोभवतीत्युपक्रम्य / अथशतं येप्रजापतिर्लोकआनन्दाः सएकोब्रह्मलोकआनन्द इतितथासर्वनिय न्तत्त्व दर्शयति / एतस्थवा अक्षरस्थप्रशासने गार्गी पुपक्रम्य / द्यावा शिवम For Private And Personal
SR No.020861
Book TitleUvvatbhashya
Original Sutra AuthorN/A
Author
Publisher
Publication Year
Total Pages454
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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